________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
२९६
हैं । उन जीवों की वैसी शीघ्र गति ।
भगवन् ! वे जीव परभव की आयु किस प्रकार बांधते हैं ? गौतम ! अपने अध्यवसाय योग से निष्पन्न करणोपाय द्वारा परभव की आयु बांधते हैं । भगवन् ! उन जीवों की गति क कारण से प्रवृत्त होती है ? गौतम ! आयु के क्षय होने से, भव का क्षय होने से और स्थिति का क्षय होने से उनकी गति प्रवृत्त होती है । भगवन् ! वे जीव आत्म- ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं या पर की ऋद्धि से ? गौतम ! आत्म- ऋद्धि से उत्पन्न होते । भगवन् ! वे जीव अपने कर्मों से उत्पन्न होते हैं या दूसरों के कर्मों से ? गौतम ! अपने कर्मों से । भगवन् ! वे जीव अपने प्रयोग से उत्पन्न होते हैं या परप्रयोग से ? गौतम ! अपने प्रयोग से ।
भगवन् ! असुरकुमार कैसे उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! नैरयिकों के समान 'आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, तक कहना चाहिए । इसी प्रकार एकेन्द्रिय से अतिरिक्त, वैमानिक तक, (जानना) । एकेन्द्रियों के विषय में । विशेष यह है कि उनकी विग्रहगति उत्कृष्ट चार समय की होती है । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक - २५ उद्देशक- ९
[९७१] भगवन् ! भवसिद्धिक नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ...इत्यादि पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त ( कहना ) । शतक - २५ उद्देशक - १०
[९७२] भगवन् ! अभवसिद्धिक नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ, इत्यादि पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त ( कहना) । शतक - २५ उद्देशक - ११
[९७३] भगवन् ! सम्यग्दृष्टि नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ...इत्यादि, एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त कहना । शतक - २५ उद्देशक - १२
[९७४] भगवन् ! मिथ्यादृष्टि नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ...इत्यादि पूर्ववत् । वैमानिक तक ( कहना) ।
शतक - २५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
शतक - २६
भगवती श्रुतदेवता को नमस्कार हो
।
[ ९७५] इस शतक में ग्यारह उद्देशक हैं, जीव, लेश्याएँ, पाक्षिक, दृष्टि, अज्ञान, ज्ञान, संज्ञाएँ, वेद, कषाय, उपयोग और योग, ये ग्यारह स्थान हैं, जिनको लेकर बन्ध की वक्तव्यता कही जाएगी ।
शतक - २६ उद्देशक - १
[९७६] उस काल उस समय में राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् क्या जीव ने