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भगवती २५/-/७/९६८
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[९६८] (भगवन् !) ध्यान कितने प्रकार का है ? (गौतम !) चार प्रकार का आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान ।
आर्त्तध्यान चार प्रकार का कहा गया है । यथा--अमनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके वियोग की चिन्ता करना, मनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके अवियोग की चिन्ता करना, आतंक प्राप्त होने पर उसके वियोग की चिन्ता करना और परिसेवित या प्रीति- उत्पादक कामभोगों आदि की प्राप्ति होने पर उनके अवियोग की चिन्ता करना । आर्त्तध्यान के चार लक्षण कहे हैं, यथा - क्रन्दनता, सोचनता, तेपनता ( अश्रुपात और परिदेवनता (विलाप ) ।
रौद्रध्यान चार प्रकार का कहा है, यथा - (१) हिंसानुबन्धी, (२) मृषानुबन्धी, (३) स्तेयानुबन्धी और (४) संरक्षणाऽनुबन्धी । रौद्रध्यान के चार लक्षण हैं, ओसन्नदोष, बहुलदोष, अज्ञानदोष और आमरणान्तदोष
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धर्मध्यान चार प्रकार का और चतुष्प्रत्यवतार है, आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविच । धर्मध्यान के चार लक्षण हैं, आज्ञारुचि, निसर्गरुचि, सूत्ररुचि और अवगादरुचि । धर्मध्यान के चार आलम्बन हैं, वाचना, प्रतिपृच्छना, परिवर्तना और धर्मकथा । धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ हैं, एकत्वानुप्रेक्षा, अनित्यानुप्रेक्षा, अशरणानुप्रेक्षा और संसारानुप्रेक्षा । शुक्लध्यान चार प्रकार का है और चतुष्प्रत्यवतार है, पृथक्त्ववितर्क- सविचार, एकत्ववितर्क - अविचार, सूक्ष्मक्रिया अनिवर्ती और समुच्छिन्नक्रिया- अप्रतिपाती । शुक्लध्यान के चार लक्षण हैं, क्षान्ति, मुक्ति (निर्लोभता), आर्जव और मार्दव । शुक्लध्यान के चार आलम्बन हैं, अव्यथा, असम्मोह, विवेक और व्युत्सर्ग । शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ हैं । अनन्तवर्तितानुप्रेक्षा, विपरिणामानुप्रेक्षा, अशुभानुप्रेक्षा और अपायानुप्रेक्षा ।
[९६९] (भंते!) व्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) दो प्रकार का - द्रव्यव्युत्सर्ग और भावव्युत्सर्ग । (भगवन् !) द्रव्यव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? ( गौतम !) चार प्रकार का - गणव्युत्सर्ग, शरीरख्युत्सर्ग, उपधिव्युत्सर्ग और भक्तपानव्युत्सर्ग । ( भगवन् !) भावव्युत्सर्ग कितने प्रकार का कहा है ? तीन प्रकार का - कषायव्युत्सर्ग, संसारव्युत्सर्ग, कर्मव्युत्सर्ग ।
( भगवन् !) कषायव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? ( गौतम !) चार प्रकार का है । क्रोधव्युत्सर्ग, मानव्युत्सर्ग, मायाव्युत्सर्ग और लोभव्युत्सर्ग । ( भगवन् !) संसारख्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) चार प्रकार का -नैरयिकसंसारव्युत्सर्ग यावत् देवसंसारख्युत्सर्ग । ( भगवन् !) कर्मव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) आठ प्रकार का है । ज्ञानावरणीयकर्मव्युत्सर्ग यावत् अन्तरायकर्मव्युत्सर्ग । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक - २५ उद्देशक - ८
[९७०] राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! नैरयिक जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा उस स्थान को छोड़ कर भविष्यत्काल में अगले स्थान को प्राप्त होता है, वैसे ही जीव भी अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा अर्थात् कर्मों द्वारा पूर्व भव को छोड़ कर भविष्यकाल में उत्पन्न होने योग्य भव को प्राप्त होकर उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! उन जीवों की शीघ्रगति और शीघ्रगति का विषय कैसा होता है ? गौतम ! जिस प्रकार कोई पुरुष तरुण और बलवान् हो, इत्यादि चौदहवें शतक के पहले उद्देशक अनुसार यावत् तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होते