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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग । ( भगवन् !) प्रायश्चित्त कितने प्रकार का है ? ( गौतम !) दस प्रकार का आलोचनार्ह यावत् पारांचिकाई |
( भगवन् !) विनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) सात प्रकार का - ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, मनविनय, वचनविनय, कायविनय और लोकोपचार विनय । भगवन् ! ज्ञानविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) पाँच प्रकार का - आभिनिबोधिकज्ञानविनय यावत् केवलज्ञानविनय । यह है ज्ञानविनय ।
( भगवन् !) दर्शनविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) दो प्रकार का - शुश्रूषाविनय और अनाशातनाविनय । ( भगवन् !) शुश्रूषाविनय कितने प्रकार का है ? ( गौतम ! ) अनेक प्रकार का - सत्कार, सम्मान इत्यादि सब वर्णन चौदहवें शतक के तीसरे उद्देशक अनुसार यावत् प्रतिसंसाधनता तक जानना चाहिए । ( भगवन् !) अनाशातनाविनय कितने प्रकार का है ? ( गौतम !) पैंतालीस प्रकार का - अरिहन्ति की अनाशातना, अरिहन्तप्रज्ञप्त धर्म की, आचार्यों की, उपाध्यायों की, स्थविरों की, कुल की, गण की, संघ की, क्रिया की, साम्भोगिक (साधर्मिक साधु-साध्वीगण) की, और आभिनिबोधिकज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक की अनाशातना इन पन्द्रह की भक्ति करना, इस प्रकार कुल ४५ भेद अनाशातनाविनय के है ।
( भगवन् ! ) चारित्रविनय कितने प्रकार का है ? ( गौतम !) पांच प्रकार कासामायिकचारित्रविनय यावत् यथाख्यातचारित्रविनय ।
वह मनोविनय कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का प्रशस्तमनोविनय और अप्रशस्तमनोविनय । वह प्रशस्तम नोविनय कितने प्रकार का है ? सात प्रकार का - अपापक, असावद्य, अक्रिय, निरुपक्लेश- अनाश्रवकर, अच्छविकर और अभूताभिशंकित । अप्रशस्त मनोविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) सात प्रकार का - पापक, सावध, सक्रिय, सोपक्लेश, आश्रवकारी, छविकारी और भूताभिशंकित । ( भगवन् !) वचनविनय कितने प्रकार का है ? ( गौतम !) दो प्रकार का - प्रशस्तवचनविनय और अप्रशस्तवचनविनय । वह प्रशस्तवचनविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) सात प्रकार का - अपापक, असावद्य यावत् अभूताभिशंकित । (भगवन् !) अप्रशस्तवचनविनय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) सात प्रकार का - पापक, सावद्य यावत् भूताभिशंकित ।
कायविनय कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का - प्रशस्तकायविनय और अप्रशस्तकायविनय । प्रशस्त कायविनय कितने प्रकार का है ? सात प्रकार का कहा - आयुक्त गमन, आयुक्त स्थान, आयुक्त निषीदन, आयुक्त उल्लंघन, आयुक्त प्रलंघन और आयुक्त सर्वेन्द्रिययोगयुंजनता । अप्रशस्त कायविनय कितने प्रकार का है ? सात प्रकार का -अनायुक्त गमन यावत् अनायुक्त सर्वेन्द्रिययोगयुंजनता ।
( भगवन् !) लोकोपचारविनय के कितने प्रकार हैं ? ( गौतम !) सात प्रकार काअभ्यासवृत्तिता, परच्छन्दानुवर्तिता, कार्य-हेतु, कृत- प्रतिक्रिया, आर्त्तगवेषणता, देश-कालज्ञता और सर्वार्थ- अप्रतिलोमता ।
[९६६] वैयावृत्य कितने प्रकार का है ? दस प्रकार का - आचार्यवैयावृत्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष, कुल, गण, संघ और साधर्मिक की वैयावृत्य ।
[ ९६७ ]. ( भगवन् !) स्वाध्याय कितने प्रकार का है ? ( गौतम !) पांच प्रकार कावाचना, प्रतिपृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा ।