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भगवती-२५/-/७/९६५
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चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टम-भक्त, दशम-भक्त, द्वादशभक्त, चतुर्दशभक्त, अर्द्धमासिक, मासिकभक्त, द्विमासिकभक्त, त्रिमासिकभक्त यावत् पाण्मासिकभक्त । यह इत्वरिक अनशन है । भगवन् ! यावत्कथिक अनशन कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का-पादोपगमन और भक्तप्रत्याख्यान | भगवन् ! पादोपगमन कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार कानिहारिम और अनिर्हारिम । ये दोनों नियम से अप्रतिकर्म होते है । भगवन् ! भक्तप्रत्याख्यान अनशन क्या है ? दो प्रकार का-निर्हारिम और अनि रिम । यह नियम से सप्रतिकर्म होता है ।
भगवन् ! अवमोदरिका तप कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का द्रव्यअवमोदरिका और भाव-अवमोदरिका । भगवन् ! द्रव्य-अवमोदरिका कितने प्रकार का है ? गौतम! दो प्रकार का उपकरणद्रव्य-अवमोदरिका और भक्तपानद्रव्य-अवमोदरिका | भगवन् ! उपकरणद्रव्य-अवमोदरिका कितने प्रकार का कहा है ? गौतम ! तीन प्रकार का एक वस्त्र, एक पात्र और त्यक्तोपकरण-स्वदनता । भगवन् ! भक्तपानद्रव्य-अवमोदरिका कितने प्रकार का है ? गौतम ! अण्डे के प्रमाण के आठ कवल आहार करना अल्पाहार-अवमोदरिका, इत्यादि सातवें शतक के प्रथम उद्देशक के अनुसार यावत् वह प्रकाम-स्सभोजी नहीं होता, यहाँ तक जानना । भगवन् ! भाव-अवमोदरिका कितने प्रकार का है ? अनेक प्रकार का अल्पक्रोध यावत् अल्पलोभ, अल्पशब्द, अल्पझंझा और अल्प तुमन्तुमा ।
भगवन् ! भिक्षाचर्या कितने प्रकार की है ? गौतम ! अनेक प्रकार की-द्रव्याभिग्रहचरक, क्षेत्राभिग्रहचरक, इत्यादि औपपातिकसूत्रानुसा शुद्धषणिक, संख्यादत्तिक, तक कहना ।
भगवन् ! रस-परित्याग के कितन प्रकार हैं ? गौतम ! अनेक प्रकार का निर्विकृतिक, प्रणीतरस-विवर्जक, इत्यादि औपपातिकसूत्र अनुसार यावत् रूक्षाहार-पर्यन्त कहना चाहिए । भगवन् ! कायक्लेश तप कितने प्रकार का है ? गौतम ! अनेक प्रकार का स्थानातिग, उत्कुटुकासनिक इत्यादि औपपातिकसूत्र अनुसार यावत् सर्वगात्रप्रतिकर्मविप्रमुक्त तक ।
(भगवन् !) प्रतिसंलीनता कितने प्रकार की, कही है ? गौतम ! चार प्रकार कीइन्द्रियप्रतिसंलीनता, कषायप्रतिसंलीनता, योगप्रतिसंलीनता और विविक्तशय्यासनप्रतिसंलीनता । भगवन् ! इन्द्रियप्रतिसंलीनता कितने प्रकार की है ? गौतम ! पांच प्रकार की श्रोत्रेन्द्रियविषयप्रचारनिरोध अथवा श्रोत्रेन्द्रियविषयप्राप्त अर्थों में रागद्वेषविनिग्रह, यावत् स्पर्शनेन्द्रियविषयप्रचारनिरोध अथवा स्पर्शनेन्द्रियविषयप्राप्त अर्थों में रागद्वेषविनिग्रह । भगवन् ! कषायप्रतिसंलीनता कितने प्रकार की है ? गौतम ! चार प्रकार की क्रोधोदयनिरोध अथवा उदयप्राप्त क्रोध का विफलीकरण, यावत् लोभोदयनिरोध अथवा उदयप्राप्त लोभ का विफलीकरण ।
भगवन् ! योगप्रतिसंलीनता कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार कीमनोयोगप्रतिसंलीनता, वचनयोगप्रतिसलीनता और काययोगप्रतिसंलीनता । मनोयोगप्रतिसंलीनता किस प्रकार की है ? अकुशल मन का विरोध, कुशलमन की उदीरणा और मन को एकाग्र करना । वचनयोगप्रतिसंलीनता किस प्रकार की है ? अकुशल वचन का निरोध, कुशल वचन की उदीरणा और वचन की एकाग्रता करना । कायप्रतिसंलीनता किसे कहते हैं ? सम्यक् प्रकार से समाधिपूर्वक प्रशान्तभाव से हाथ-पैरों को संकुचित करना, कछुए के समान इन्द्रियों का गोपन करके स्थिर होना । विविक्तशय्यासनसेवनता किसे कहते हैं ? आराम अथवा उद्यानों आदि में, सोमिल-उद्देशक अनुसार, यावत् निर्दोष शय्यासंस्तारक आदि उपकरण लेकर रहना।
(भगवन् !) वह आभ्यन्तर तप कितने प्रकार का है ? (गौतम !) छह प्रकार का