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________________ भगवती-२६/-/१/९७६ २९७ पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा ? (अथवा क्या जीव ने पापकम) बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा ? (या जीव ने पापकर्म) बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा? अथवा बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ? गौतम ! किसी जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा या किसी जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है, किन्तु आगे नहीं बांधेगा या किसी जीव ने पापकर्म बांधा था, अभी नहीं बांधता है, किन्तु आगे बांधेगा या किसी जीव ने पापकर्म बांधा था, अभी नहीं बांधता है आगे भी नहीं बांधेगा । भगवन् ! सलेश्य जीव ने क्या पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा ? अथवा बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा ? इत्यादि चारों प्रश्न । गौतम ! किसी लेश्या वाले जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा; इत्यादि चारों भंग जानना । भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी जीव पहले पापकर्म बांधता था ? इत्यादि चारों प्रश्न । गौतम ! कोई पापकर्म बांधता था, बांधता है और बांधेगा; तथा कोई जीव (पापकर्म) बांधता था, बांधता है, किन्तु आगे नहीं बांधेगा । इसी प्रकार पद्मलेश्या वाले जीव तक समझना । सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग जानना । शुक्ललेश्यी के सम्बन्ध में सलेश्यजीव के समान चारों भंग कहना । भगवन् ! अलेश्यी जीव ने क्या पापकर्म बांधा था, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! उस जीव ने पापकर्म बांधा था, किन्तु वर्तमान में नहीं बांधता और बांधेगा भी नहीं । भगवन् ! क्या कृष्णपाक्षिक जीव ने पापकर्म बांधा था ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! किसी जीव ने पापकर्म बांधा था; इत्यादि पहला और दूसरा भंग जानना । भगवन् ! क्या शुक्लपाक्षिक जीव ने पापकर्म बांधा था? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! चारों ही भंग जानना । [९७७] सम्यग्दृष्टि जीवों में (पूर्ववत्) चारों भंग जानना चाहिए । मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए । ज्ञानी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं । आभिनिबोधिकज्ञानी से मनःपर्यवज्ञानी जीवों तक भी चारों ही भंग जानना । केवलज्ञानी जीवों में अन्तिम एक भंग अलेश्य जीवों के समान है । अज्ञानी जीवों में पहला और दूसरा भंग है । मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी में भी पहला और दूसरा भंग जानना ।। ___आहार यावत् परिग्रह-संज्ञोपयुक्त जीवों में पहला और दूसरा भंग है । नोसंज्ञोपयुक्त जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं । सवेदक जीवों में प्रथम और द्वितीय भंग हैं । स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी में भी प्रथम और द्वितीय भंग हैं । अवेदक जीवों में चारों भंग है। सकषायी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं । क्रोध यावत् मानकषायी जीवों में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है । लोभकषायी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं । भगवन् ! क्या अकषायी जीव ने पापकर्म बांधा था ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! किसी अकषायी जीव ने बाधा था, किन्तु अभी नहीं बांधता है, मगर भविष्य में बांधेगा तथा किसी जीव ने बांधा था, किन्तु अभी नहीं बांधता है और आगे भी नहीं बांधेगा । सयोगी जीवों में चारों भंग होते हैं । मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी जीव में चारों भंग पाये जाते हैं । अयोगी जीव में अन्तिम एक भंग पाया जाता है । साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव में चारों ही भंग पाये जाते हैं । [९७८] भगवन् ! क्या नैरयिक जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा? गौतम ! किसी ने पापकर्म बांधा था, इत्यादि पहला और दूसरा भंग । भगवन् ! क्या सलेश्य
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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