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भगवती-२५/-/७/९५२
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परिहारविशुद्धिकसंयत के ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन । भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत के ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट चार । भगवन् ! यथाख्यातसंयत के एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट दो ।
भगवन् ! सामायिकसंयत के अनेक भवों में कितने आकर्ष होते हैं ? गौतम ! बकुश के समान उसके आकर्ष होते हैं । भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत के ? गौतम ! जघन्य दो और उत्कृष्ट नौ सौ से ऊपर और एक हजार के अन्दर आकर्ष होते हैं । परिहारविशुद्धिकसंयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट सात आकर्ष हैं । सूक्ष्मसम्परायसंयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट नौ आकर्ष हैं । यथाख्यातसंयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट पांच. आकर्ष हैं ।
[९५३] भगवन् ! सामायिकसंयत कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन नौ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी कहना | परिहारविशुद्धिसंयत जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन २९ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष पर्यन्त रहता है । सूक्ष्मसम्परायसंयत निर्ग्रन्थं के अनुसार कहना । यथाख्यातसंयत को सामायिकसंयत के समान जानना ।
भगवन् ! (अनेक) सामायिकसंयत कितने काल तक रहते हैं ? गौतम ! (सदाकाल)। भगवन् ! (अनेक) छेदोपस्थापनीयसंयत ? गौतम ! जघन्य अढाई सौ वर्ष और उत्कृष्ट पचास लाख करोड़ सागरोपम तक होते हैं । भगवन् ! (अनेक) परिहारविशुद्धिकसंयत ? गौतम ! जघन्य देशोन दो सौ वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पूर्वकोटिवर्ष तक होते हैं । भगवन् ! (अनेक) सूक्ष्मसम्परायसंयत ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहर्त तक रहते हैं । (बहुत) यथाख्यातसंयतों को सामायिकसंयतों के समान जानना ।।
भगवन् ! (एक) सामायिकसंयत का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त इत्यादि पुलाक के समान जानना । इसी प्रकार का कथन यथाख्यातसंयत तक समझना चाहिए । भगवन् ! (अनेक) सामायिकसंयतों का अन्तर काल ? गौतम ! उनका अन्तर नहीं होता । भगवन् ! (अनेक) छेदोपस्थापनीयसंयतों का अन्तर ? गौतम ! जघन्य तिरेसठ हजार वर्ष और उत्कृष्ट (कुछ कम) अठारह कोड़ाकोंड़ी सागरोपम काल । भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयतों का अन्तर काल ? गौतम ! जघन्य चौरासी हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन अठारह कोड़ाकोड़ी सागरोपम का है । सूक्ष्मसम्परायसंयतों का अन्तर निर्ग्रन्थों के समान है । यथाख्यातसंयतों का अन्तर सामायिकसंयतों के समान है ।
भगवन् ! सामायिकसंयत के कितने समुद्घात कहे हैं ? गौतम ! छह समुद्घात हैं, इत्यादि वर्णन कषायकुशील के समान समझना । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत जानना । परिहारविशुद्धिकसंयत को पुलाक के समान जानना । सूक्ष्मसम्परायसंयत को निर्ग्रन्थ के समान जानना । यथाख्यातसंयत स्नातक के समान जानना ।
__भगवन् ! सामायिकसंयत लोक के संख्यातवें भाग में होता है या असंख्यातवें ? वह लोक के संख्यातवें भाग में नहीं होता; इत्यादि पुलाक के समान । इसी प्रकार सूक्ष्मसम्परायसंयत तक जानना । यथाख्यातसंयत स्नातक अनुसार जानना ।
भगवन् ! सामायिकसंयत क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करता है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! क्षेत्र-अवगाहना के समान क्षेत्र-स्पर्शना भी जानना ।
भगवन् ! सामायिकसंयत किस भाव में होता है ? गौतम ! क्षायोपशमिक भाव में ।