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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
और मोहनीय कर्म को छोड़ कर शेष छह । यथाख्यातसंयत स्नातक के समान है ।
भगवन् ! सामायिकसंयत कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का । इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्परायसंयत को जानना । भगवन् ! यथाख्यातसंयत कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! सात या चार, यदि सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है तो मोहनीयकर्म को छोड़ कर शेष सात | यदि चार का वेदन करता है तो वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र का करता है ।
भगवन् ! सामायिकसंयत कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? गौतम ! सात कर्मप्रकृतियों की; इत्यादि बकुश के समान जानना । इसी प्रकार यावत् परिहारविंशद्धिकसंयत पर्यन्त कहना चाहिए । भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? गौतम ! छह या पांच की । यदि छह की उदीरणा करता है तो आयुष्य और वेदनीय को छोड़ कर शेष छह कर्मप्रकृतियों को; यदि पांच की उदीरणा करता है तो आयुष्य, वेदनीय
और मोहनीय को छोड़कर शेष पांच कर्मप्रकृतियों को उदीरता है । भगवन् ! यथाख्यातसंयत कितनी कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है ? गौतम ! वह पांच या दो की या अनुदीरक होता है । यदि वह पांच की उदीरणा करता है तो आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़ कर शेष पांच कर्मप्रकृतियों को उदीरता है, इत्यादि निर्ग्रन्थ के समान जानना चाहिए ।
[९५०] भगवन् ! सामायिकसंयत, सामायिकसंयतत्व त्यागते हुए किसको छोड़ता है और किसे ग्रहण करता है ? गौतम ! वह सामायिकसंयतत्व को छोड़ता है और छेदोपस्थापनीयसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम अथवा संयमासंयम को ग्रहण करता है । भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत ? गौतम ! वह छेदोपस्थाफ्नीयसंयतत्व का त्याग करता है और सामायिकसंयम, परिहारविशुद्धिकसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम या संयमासंयम को प्राप्त करता है । भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत ? गौतम ! वह सूक्ष्मसम्परायसंयतत्व को छोड़ता है और सामायिकसंयम, छेदोपस्थापनीयसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम अथवा संयमासंयम को ग्रहण करता है । भगवन् ! यथाख्यातसंयत ? गौतम ! वह यथाख्यातसंयतत्व का त्याग करता है और सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम या सिद्धिगति को प्राप्त करता है ।।
[९५१] भगवन् ! सामायिकसंयत संज्ञोपयुक्त होता है या नोसंज्ञोपयुक्त होता है ? गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त होता है, इत्यादि बकुश के समान जानना । इसी प्रकार का कथन परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त जानना । सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन पुलाक के समान जानना । भगवन् ! सामायिकसयत आहारक होता है या अनाहारक होता है ? गौतम ! पुलाक के समान जानना । इसी प्रकार सूक्ष्मसम्परायसंयत तक जानना । यथख्यातसंयत स्नातक के समान जानना ।
भगवन् ! सामायिकसंयत कितने भव ग्रहण करता है ? गौतम ! जघन्य एक भव और उत्कृष्ट आठ भव । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी जानना । भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन भव ग्रहण करता है । इसी प्रकार यावत् यथाख्यातसंयत तक करना चाहिए ।
[९५२] भगवन् ! सामायिकसंयत के एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व । भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत का एक भव में कितने आकर्ष होते हैं । गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट बीस-पृथक्त्व । भगवन् !