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भगवती - २५/-/६/९१२
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की अपेक्षा सब पुलाक के समान जानना । संहरण की अपेक्षा किसी भी काल में होता है । भगवन् ! यदि बकुश नोअवसर्पिणी- नोउत्सर्पिणीकाल में होता है तो किस आरे में होता है ? गौतम ! जन्म और सद्भाव के अपेक्षा सब पुलाक के समान कहना चाहिए । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील के विषय में कहना । निर्ग्रन्थ और स्नातक का कथन भी पुलाक के समान है । विशेष यह कि संहरण की अपेक्षा ये सर्वकाल में होते हैं ।
[९१३] भगवन् ! पुलाक मरकर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में । भगवन् ! यदि वह देवगति में जाता है तो क्या भवनपतियों में उत्पन्न होता है या वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह केवल वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है । वैमानिक देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट सहस्त्रारकल्प में उत्पन्न होता है । बकुश और प्रतिसेवनाकुशील में यही जानना । किन्तु वह उत्कृष्टतः अच्युतकल्प में उत्पन्न होता है । कषायकुशील की वक्तव्यता पुलाक के समान है, विशेष यह है कि वह उत्कृष्टतः अनुत्तरविमानों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! पूर्ववत् यावत् अजघन्य अनुत्कृष्ट अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! स्नातक मृत्यु प्राप्त कर किस गति में जाता है ? गौतम ! सिद्धिगति में ।
भगवन् ! देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक क्या इन्द्ररूप में उत्पन्न होता है या सामानिकदेवरूप में, त्रायस्त्रिंशरूप में लोकपालरूप में, अथवा अहमिन्द्ररूप में ? गौतम ! अविराधना की अपेक्षा वह इन्द्ररूप में, सामानिकरूप में, त्रायस्त्रिंशरूप में अथवा लोकपाल के रूप में उत्पन्न होता है, किन्तु अहमिन्द्ररूप में उत्पन्न नहीं होता । विराधना की अपेक्षा अन्यतर देव में उत्पन्न होता है । इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवनाकुशील को समझना । भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! अविराधना की अपेक्षा वह इन्द्ररूप यावत् अहमिन्द्ररूप में उत्पन्न होता है । विराधना की अपेक्षा अन्यतरदेव में उत्पन्न होता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! अविराधना की (अपेक्षा) अहमिन्द्ररूप में उत्पन्न होता है । विराधना की अपेक्षा वह किसी भी देवरूप में उत्पन्न होता है ।
भगवन् ! देवलोकों में उत्पन्न होते हुए पुलाक की स्थिति कितने काल की कही है ? ! जय पोपपृथक्त्व की और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम की है । भगवन् ! बकुश की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपमपृथक्त्व की और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की है । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील में जानना । भगवन् ! कषायकुशील की स्थिति ? गौतम ! जघन्य पल्योपमपृथक्त्व की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ की स्थिति ? गौतम ! अजघन्य - अन्तुकृष्ट तेतीस सागरोपम की है ।
[९१४] भगवन् ! पुलाक के संयमस्थान कितने कहे हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक कहना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ के संयमस्थान ? गौतम ! एक ही अजघन्य - अनुत्कृष्ट संयमस्थान है । इसी प्रकार स्नातक के विषय में समझना । भगवन् ! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवनाकुशील कषायकुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक, इनके संयमस्थानों में अल्पबहुत्व क्या है ? गौतम ! निर्ग्रन्थ और स्नातक का संयमस्थान अजघन्यअनुत्कृष्ट एक ही है और सबसे अल्प है । इनसे पुलाक के संयमस्थान असंख्यातगुणा हैं । उनसे बकुश के संयमस्थान असंख्यातगुणा हैं, उनसे प्रतिसेवनाकुशील के संयमस्थान