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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
असंख्यातगुणा हैं और उनसे कषायकुशील के संयमस्थान असंख्यातगुणा हैं ।
[९१५] भगवन् ! पुलाक के चारित्र-पर्यव कितने होते हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । इसी प्रकार स्नातक तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! एक पुलाक, दूसरे पुलाक के स्वस्थान-सन्निकर्ष से चारित्र-पर्यायों से हीन है, तुल्य है या अधिक है ? गौतम ! वह कदाचित् हीन होता है, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है । यदि हीन हो तो अनन्तभागहीन, असंख्यातभागहीन तथा संख्यातभागहीन होता है एवं संख्यातगुणहीन, असंख्यातगुणहीन और अनन्तगुणहीन होता है । यदि अधिक हो तो अनन्तभाग-अधिक संख्यातभाग-अधिक और संख्यातभाग-अधिक होता है; तथैव संख्यातगुण-अधिक, असंख्यातगुण-अधिक और अनन्तगुण-अधिक होता है । भगवन् ! पुलाक अपने चारित्र-पर्यायों से, बकुश से परस्थान-सन्निकर्ष की अपेक्षा हीन हैं, तुल्य हैं या अधिक हैं ? गौतम ! वे अनन्तगुणहीन होते हैं । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील में कहना । कषायकुशील से पुलाक के स्वस्थान के समान षट्स्थानपतित कहना चाहिए । बकुश के समान निर्ग्रन्थ के भी कहना । स्नातक का कथन भी बकश के समान है ।
भगवन् ! बकुश, पुलाक के परस्थान-सन्निकर्ष से चारित्र-पर्यायों की अपेक्षा हीन है, तुल्य है या अधिक है ? गौतम ! वह हीन भी नहीं और तुल्य भी नहीं; किन्तु अधिक है; अनन्तगुणअधिक है । भगवन् ! बकुश, दूसरे बकुश के स्वस्थान-सन्निकर्ष से चारित्रपर्यायों से हीन है, तुल्य है या अधिक है ? गौतम ! वह कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है । यदि हीन हो तो षटस्थान-पतित होता है | भगवन् ! बकुश, प्रतिसेवनाकुशील के परस्थान-सन्निकर्ष से, चारित्र-पर्यायों से हीन है, तुल्य है या अधिक है ? गौतम ! वह षट्कस्थानपतित होता है । इसी प्रकार कषायकुशील भी समझना । भगवन् ! बकुश निर्ग्रन्थ के परस्थान-सन्निकर्ष से चारित्र-पर्यायों से हीन, तुल्य या अधिक होते हैं ? गौतम ! वे अनन्तगुण-हीन होते हैं । इसी प्रकार स्नातक भी जानना । प्रतिसेवनाकुशील भी बकुश समान जानना । कषायकुशील बी बकुश की समान है । विशेष यह है कि पुलाक के साथ षट्कस्थानपतित कहना चाहिए ।
भगवन् ! निर्ग्रन्थ, पुलाक के परस्थान-सन्निकर्ष से, चारित्रपर्यायों से हीन है, तल्य है या अधिक है ? गौतम ! वह अनन्तगुण-अधिक है । इसी प्रकार यावत् कषायकुशील की अपेक्षा से भी जानना । भगवन् ! एक निर्ग्रन्थ, दूसरे निर्ग्रन्थ के स्वस्थान-सन्निकर्ष से चारित्रपर्यायों से हीन है या अधिक है ? गौतम ! वह तुल्य होता है । इसी प्रकार स्नातक के साथ भी जानना । भगवन् ! स्नातक पुलाक के परस्थान-सन्निकर्ष से चारित्र-पर्यायों से हीन, तुल्य अथवा अधिक है ? गौतम ! निर्ग्रन्थ के समान जानना । भगवन् ! एक स्नातक दूसरे स्नातक के स्वस्थान-सन्निकर्ष से चारित्र-पर्यायों से हीन, तुल्य या अधिक है ? गौतम ! वह तुल्य है ।
भगवन् ! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवनाकुशील, कषायकुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक, इनके जघन्य और उत्कृष्ट चारित्र-पर्यायों में अल्प बहुत्व क्या है ? गौतम ! पुलाक और कषायकुशील इन दोनों के जघन्य चारित्र-पर्याय परस्पर तुल्य हैं और सबसे अल्प हैं । उनसे पुलाक के उत्कृष्ट चारित्र-पर्याय अनन्तगुण | उनसे बकुश और प्रतिसेवनाकुशील इन दोनों के जघन्य चारित्र-पर्याय परस्पर तुल्य हैं और अनन्तगुणे । उनसे बकुश के उत्कृष्ट चारित्र-पर्याय