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________________ २७८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भावलिंग की अपेक्षा नियम से स्वलिंग में होता है । इसी प्रकार स्नातक तक कहना । [९१०] भगवन् ! पुलाक कितने शरीरों में होता है ? गौतम ! वह औदारिक, तैजस और कार्मण, इन तीन शरीरों में होता है । भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह तीन या चार शरीरों में होता है । यदि तीन शरीरों में हो तो औदारिक, तैजस और कार्मण शरीर में होता है, और चार शरीरों में हो तो औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीरों में होता है । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील में समझना । भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह तीन, चार या पांच शरीरों में होता है । यदि तीन शरीरों में हो तो औदारिक, तैजस और कार्मण शरीर में होता है, चार शरीरों में हो तो औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर में होता है और पांच शरीरों में हो तो औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर में होता है । निर्ग्रन्थ और स्नातक का शरीरविषयक कथन पुलाक के समान है । [९११] भगवन् ! पुलाक कर्मभूमि में होता है या अकर्मभूमि में होता है ? गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा कर्मभूमि में होता है, अकर्मभूमि में नहीं होता | बकुश ? गौतम ! जन्म और सद्भाव से कर्मभूमि में होता है । संहरण की अपेक्षा कर्मभूमि में भी और अकर्मभूमि में भी होता है । इसी प्रकार स्नातक तक कहना । [९१२] भगवन् ! पुलाक अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में होता है, अथवा नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है ? गौतम ! पुलाक अवसर्पिणीकाल में भी होता है, उत्सर्पिणीकाल में भी होता है तथा नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में भी होता है । यदि पुलाक अवसर्पिणीकाल में होता है, तो क्या वह सुषम-सुषमाकाले में होता है अथवा यावत् दुःषम-दुःषमाकाल में होता है ? गौतम ! (पुलाक) जन्म की अपेक्षा सुषम-सुषमा और सुषमाकाल में नहीं होता, किन्तु सुषम-दुःषमा और दुःषम-सुषमाकाल में होता है तथा दुःषमाकाल एवं दुःषम-दुःषमाकाल में वह नहीं होता । सद्भाव की अपेक्षा वह सुषम-सुषमा, सुषमा तथा दुःषम-दुःषमाकाल में नहीं होता, किन्तु सुषम-दुःषमा, दुःषम-सुषमा एवं दुःषमाकाल में होता है । भगवन् ! यदि पुलाक उत्सर्पिणीकाल में होता है, तो क्या दुःषम-दुःषमकाल में होता है यावत् सुषम-सुषमाकाल में होता है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा दुःषम-दुषमाकाल में नहीं होता, वह दुःषमकाल में, दुःषम-सुषमाकाल में या सुषम-दुःषमाकाल में होता है, किन्तु सुषमाकाल में तथा सुषम-सुषमाकाल में नहीं होता । सद्भाव की अपेक्षा वह दुःषम-दुःषमाकाल में, दुःषमाकाल में, सुषमाकाल में तथा सुषम-सुषमाकाल में नहीं होता, किन्तु दुःषम-सुषमाकाल में या सुषम-दुःषमाकाल में होता है । भगवन् ! यदि (पुलाक) नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है तो क्या वह सुषम-सुषम-समानकाल में, या यावत् दुःषम-सुषमा-समानकाल में होता है ? गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा वह दुःषम-सुषमा-समानकाल में होता है । भगवन् ! बकुश किस काल में होता है ? गौतम ! वह अवसर्पिणीकाल में, उत्सर्पिणीकाल में अथवा नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है । भगवन् ! यदि बकुश अवसर्पिणीकाल में होता है तो क्या सुषम-सुषमाकाल में होता है ? इत्यादि । गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा (वह) सुषम-दुःषमकाल में, दुःषम-सुषमाकाल में या दुःषमकाल में होता है । संहरण की अपेक्षा किसी भी काल में होता है । भगवन् ! यदि (बकुश) उत्सर्पिणीकाल में होता है तो क्या दुःषम-दुःषमाकाल में होता है ? इत्यादि । गौतम ! जन्म और सद्भाव
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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