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________________ भगवती - २५/-/६/९०४ एकमात्र यथाख्यातसंयम में होता है । इसी प्रकार स्नातक में समझना । [९०५] भगवन् ! पुलाक प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! पुलाक प्रतिसेवी होता है, अप्रतिसेवी नहीं होता है । भगवन् ! यदि वह प्रतिसेवी होता है, तो क्या वह मूलगुण - प्रतिसेवी होता है, या उत्तरगुण- प्रतिसेवी होता है ? गौतम ! दोनो । यदि वह मूलगुणों का प्रतिसेवी होता है तो पांच प्रकार के आश्रवों में से किसी एक आश्रव वा प्रतिसेवन करता है और उत्तरगुणों का प्रतिसेवी होता है तो दस प्रकार के प्रत्याख्यानों में से किसी एक प्रत्याख्यान का प्रतिसेवन करता है । भगवन् ! बकुश प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! वह प्रतिसेवी होता है । भगवन् ! यदि वह प्रतिसेवी होता है, तो क्या मूलगुण - प्रतिसेवी होता है या उत्तरगुण- प्रतिसेवी होता है ? गौतम ! वह उत्तरगुणप्रतिसेवी होता है । और दस में से किसी एक प्रत्याख्यान का प्रतिसेवी होता है । प्रतिसेवनाकुशील का कथन पुलाक के समान जानना । भगवन् ! कषायकुशील प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! वह अप्रतिसेवी होता है । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ और स्नातक में जानना । २७७ [९०६] भगवन् ! पुलाक में कितने ज्ञान होते हैं ? गौतम ! पुलाक में दो या तीन ज्ञान होते हैं । यदि दो ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं । यदि तीन ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होते हैं । इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवनाकुशील के विषय में जानना चाहिए । भगवन् ! कषायकुशील में कितने ज्ञान होते हैं ? गौतम ! कषायकुशील में दो, तीन या चार ज्ञान होते हैं । यदि दो ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान, तीन ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान; अथवा आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और मनः पर्यवज्ञान । यदि चार ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान होते हैं । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ में जानना । भगवन् ! स्नातक में कितने ज्ञान होते हैं ? गौतम ! एकमात्र केवलज्ञान । [९०७] भगवन् ! पुलाक कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? गौतम ! जघन्यतः नौवें पूर्व की तृतीय आचारवस्तु तक का और उत्कृष्टतः पूर्ण नौ पूर्वो का । भगवन् ! बकुश कितने श्रुत पढ़ता है ? गौतम ! जघन्यतः अष्ट प्रवचनमाता का और उत्कृष्ट दस पूर्व का अध्ययन करता है । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील में समझना । भगवन् ! कषायकुशील कितने श्रुतका अध्ययन करता है ? गौतम ! जघन्य अष्ट प्रवचनमाता का और उत्कृष्ट चौदह पूर्वों का करता है । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ में जानना । भगवन् ! स्नातक कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? गौतम ! स्नातक श्रुतव्यतिरिक्त होते हैं । 1 [९०८] भगवन् ! पुलाक तीर्थ में होता है या अतीर्थ में होता है ? गौतम ! वह तीर्थ में होता है, अतीर्थ में नहीं होता है । इसी प्रकार बकुश एवं प्रतिसेवनाकुशील का कथन समझ लेना । भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह तीर्थ में भी होता है और अतीर्थ में भी होता है । भगवन् ! वह अतीर्थ में होता है तो क्या तीर्थंकर होता है या प्रत्येकबुद्ध होता है ? वह तीर्थंकर भी होता है, प्रत्येकबुद्ध भी । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ और स्नातक को जानना । [९०९] भगवन् ! पुलाक स्वलिंग में होता है, अन्यलिंग में या गृहीलिंगी होता है ? गौतम ! द्रव्यलिंग की अपेक्षा वह स्वलिंग में, अन्यलिंग में या गृहीलिंग में होता है, किन्तु
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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