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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
भगवन् ! यदि वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं तो पर्याप्त या अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं ? गौतम ! वे पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं । भगवन् ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य नागकुमारों में उत्पन्न हो तो कितनी काल की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति के नागकुमारों में उत्पन्न होता है, इत्यादि असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य की वक्तव्यता के समान किन्तु स्थिति और संवेध नागकुमारों के समान जानना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-२४ उद्देशक-४ से ११ | [८४५] सुवर्णकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक ये आठ उद्देशक भी नागकुमारों के समान कहने चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-२४ उद्देशक-१२ | [८४६] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं, किन्तु तिर्यचों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं । यदि वे तिर्यश्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के व्युत्क्रान्ति पद अनुसार यहाँ भी उपपात कहना । यावत्भगवन् ! यदि वे बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो पर्याप्त या अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक से उत्पन्न होते हैं । गौतम ! दोनों से ।
___ भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वालोमें । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे प्रतिसमय निरन्तर असंख्यात उत्पन्न होते हैं । सेवार्तसंहनन वाले होते हैं । शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है । संस्थान मसूर की दाल जैसा होता है । चार लेश्याएँ होती हैं । मिथ्यादृष्टि ही होते हैं | अज्ञानी ही होते हैं । दो अज्ञान नियम से होते हैं । काययोगी ही होते हैं । साकार और अनाकार दोनों उपयोग होते हैं । चारों संज्ञाएँ, चारों कषाय और एकमात्र स्पर्शेन्द्रिय होती हैं । प्रथम के तीन समुद्घात होते हैं, साता और असातादोनों वेदना होती है । नपुंसकदेवी ही होते हैं । उनकी स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की होती है । अध्यवसाय प्रशस्त और अप्रशस्त, दोनों प्रकार के होते हैं । अनुबन्ध स्थिति के अनुसार होता है ।
भगवन् ! वह पृथ्वीकायिक मर कर पुनः पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न हो तो इस प्रकार कितने काल तक सेवन करता है और कितने काल तक गमनागमन करता रहता है ? गौतम ! भव की अपेक्षा से वह जघन्य दो भव एवं उत्कृष्ट असंख्यात भव ग्रहण करता है और काल की अपेक्षा से वह जघन्य दो अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल । यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहर्त की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । इस प्रकार समग्र वक्तव्यता जानना । यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की