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भगवती-२४/-/१२/८४६
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स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । शेष सब कथन यावत् अनुबन्ध तक पूर्वोक्त प्रकार से जानना । विशेष यह है कि वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट १७६००० वर्ष इतने काल तक गमनागमन करता है ।
यदि वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो तो उसके सम्बन्ध में प्रथम गमक समान कहना । किन्तु विशेष यह है कि उसमें लेश्याएँ तीन होती हैं । स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त की होती है । अध्यवसाय अप्रशस्त और अनुबन्ध स्थिति के समान होता है । यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो उसके सम्बन्ध में चतुर्थ गमक के अनुसार कहना । यदि वह उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो, तो यही वक्तव्यता । विशेष यह है कि वह जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं । यावत् भवादेश सेजघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है । काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तमुहर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तमुहर्त अधिक ८८ हजार वर्ष । यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में तृतीय गमक के समान कहना । विशेष यह है कि उसकी स्वयं की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की होती है ।
यदि वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । यहाँ सातवें गमक की वक्तव्यता यावत् भवादेश तक कहनी चाहिए । काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तमुहर्त अधिक ८८ हजार वर्ष । यदि वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । यहाँ सप्तम गमक की समग्र वक्तव्यता भवादेश तक कहनी चाहिए । काल की अपेक्षा से-जघन्य ४४ हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख छिहत्तर हजार वर्ष । (भगवन् !) यदि वह अप्कायिक-एकेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या सूक्ष्म अप्कायिक० से आकर उत्पन्न होता है, या बादर अप्कायिक० से ? (गौतम !) पृथ्वीकायिक जीवों के समान यहां भी चार भेद कहना ।
भगवन् ! जो अप्कायिक जीव कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य अन्तमुहर्त उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है । इस प्रकार पृथ्वीकायिक के समान अप्कायिक के भी नौ गमक जानना चाहिए । विशेष यह है कि अप्कायिक का संस्थान स्तिबुक के आकार का होता है । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष है । इसी प्रकार तीनों गमकों में जानना चाहिए । तीसरे, छठे, सातवें, आठवें और नौवें गमकों में संवेध-भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण होते हैं । शेष चार गमकों में जघन्य दो भव और उत्कृष्ट असंख्यात भव होते हैं । तीसरे गमक में काल की अपेक्षा सेजघन्य अन्तमुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष । छठे