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________________ २२२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद सागरोपम होती है । इसी प्रकार पंकप्रभा में चालीस सागरोपम की, धूमप्रभा में अड़सठ सागरोपम की और तमः प्रभा में ८८ सागरोपम की स्थिति होती है । संहनन के विषय मेंवालुकाप्रभा में वज्रऋषभनाराच से कीलिका संहनन तक पांच संहननवाले जाते हैं । पंकप्रभा में आदि के चार संहनन वाले, धूमप्रभा में प्रथम के तीन संहनन, तमः प्रभा में प्रथम के दो संहनन वाले नैरयिक रूप में उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, जो अधः सप्तमनरकपृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति वालो में । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के समान इसके भी नौ गमक और अन्य सब वक्तव्यता समझनी चाहिए । विशेष यह है कि वहाँ वज्रऋषभनाराचसंहनन वाला ही उत्पन्न होता है, स्त्रीवेद वाले जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते । शेष समग्र कथन अनुबन्ध तक पूर्वोक्त प्रकार से जानना । भव की अपेक्षा से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट सात भव तथा काल की अपेक्षा से जघन्य दो अन्तमुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम तक गमनागमन करता है । वे ( संज्ञी - पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) जघन्य काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं; इत्यादि सब वक्तव्यता भवादेश तक पूर्वोक्त रूप से जानना । कालादेश से भी जघन्यतः उसी प्रकार यावत् चार पूर्वकोटि अधिक (६६ सागरोपम), काल तक गमनागमन करता है । I वह जीव उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, इत्यादि सब वक्तव्यता, अनुबन्ध तक पूर्ववत् जानना । भव की अपेक्षा से - जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पांच भव ग्रहण करता है । काल की अपेक्षा से - जघन्य दो अन्तमुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम । वही जीव स्वयं जघन्य स्थिति वाला हो और वह सप्तम नरकपृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो समस्त वक्तव्यता रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य जघन्य स्थिति वाले के अनुसार भवादेश तक कहना । विशेष यह है कि वह प्रथम संहननी होता है, वह स्त्रीवेदी नहीं होता । भव की अपेक्षा से - जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट सात भव ग्रहण करता है । काल की अपेक्षा से - जघन्य दो अन्तमुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक ६६ सागरोपम । वही जघन्य स्थिति वाले सप्तम नरकपृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो उस सम्बन्ध में समग्र चतुर्थ गमक कालादेश तक कहना । वही उत्कृष्ट स्थिति वाले सप्तम नरकपृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो, इस सम्बन्ध में अनुबन्ध तक पूर्वोक्त वक्तव्यता जानना । भव की अपेक्षा से - जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पाँच भव ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से जघन्य दो अन्तमुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन अन्तमुहूर्त अधिक ६६ सागरोपम । वही स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और सप्तम नरकपृथ्वी में उत्पन्न हो तो जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इस विषय में समग्र वक्तव्यता सप्तम नरकपृथ्वी के गमक के समान, भवादेश तक कहनी चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष जानना । काल की अपेक्षा से - जघन्य दो
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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