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भगवती- २४/-/१/८३९
अधिक दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक चालीस हजार वर्ष तक कालयापन करते हैं । वही उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो जघन्य सागरोपम स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट भी सागरोपम स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? यहाँ पूर्ववत् सम्पूर्ण चतुर्थ गमक, यावत्-काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक चार सागरोपम काल यावत् गमनागमन करता है ।
भगवन् ! उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष की और उत्कृष्टतः एक सागरोपम की स्थिति वालोमें । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! परिमाण आदि से लेकर भवादेश तक की वक्तव्यता के लिए प्रथम गमक जानना । परन्तु विशेष यह है कि स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की है । इसी प्रकार अनुबन्ध भी जानना । शेष पूर्ववत् तथा काल की अपेक्षा से जघन्य इस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम- । यदि वह (उत्कृष्ट० संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) जघन्यस्थिति वाले (रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों) में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य और उत्कृष्ट द हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! सम्पूर्ण सप्तम गमक कहना । काल की अपेक्षा से, जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष । भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त यावत्... तिर्यञ्चयोनिक, जो उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वालोमें । भगवन् ! वे जीव (एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?) गौतम ! परिमाण से लेकर भवादेश तक के लिए वही पूर्वोक्त सप्तम गमक सम्पूर्ण कहना । काल की अपेक्षा से जघन्य पूर्वकोटि अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल । इस प्रकार ये नौ गमक होते हैं; और इन नौ ही गमकों का प्रारम्भ और उपसंहार असंज्ञी जीवों के समान है ।
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[८४०] भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, जो शर्कराप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य एक सागरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वालो | भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संज्ञी - पंचेन्द्रियतिर्यञ्च की समग्र वक्तव्यता यहाँ भवादेश पर्यन्त कहनी चाहिए तथा काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक बारह सागरोपम । इस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के गमक के समान नौ ही गमक जानना । विशेष यह है कि सभी नरकों में नैरयिकों की स्थिति और संवेध के सम्बन्ध में 'सागरोपम' कहना । इसी प्रकार छठी नरकपृथ्वी पर्यन्त जानना । परन्तु जिस नरकपृथ्वी में जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति जितने काल की हो, उसे उसी क्रम से चार गुणी करनी चाहिए । जैसेवालुकाप्रभापृथ्वी में उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की है; उसे चार गुणा करने से अठ्ठाईस