________________
भगवती - २४/-/१/८४०
२२३
पूर्वकोटि अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम । यदि वह जघन्य स्थिति वाले सप्तम नरकपृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो उसके सम्बन्ध में वही वक्तव्यता और वही संवेध सप्तम गमक के सदृश कहना । यदि वह उत्कृष्ट स्थिति वाले सप्तम नरक के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो, वही पूर्वोक्त वक्तव्यता यावत् अनुबन्ध तक । भव अपेक्षा से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पांच भव, तथा काल की अपेक्षा से जघन्य दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम, यावत् इतने काल वह गमनागमन करता है ।
[८४१] भगवन् ! यदि वह नैरयिक मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह संज्ञी - मनुष्यों में से या असंज्ञी - मनुष्यों में से उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह संज्ञी - मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, असंज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है । भगवन् ! यदि वह संज्ञी - मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है तो क्या संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी - मनुष्यों में से अथवा असंख्येय वर्ष की आयु वाले से ? गौतम ! वह संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी - मनुष्यों में से उत्पन्न होता है । भगवन् ! यदि वह संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी - मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी - मनुष्यों में से या अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी - मनुष्यों में से ? गौतम ! वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी - मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी - मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है । भगवन् ! संख्यात वर्ष की आयुवाला पर्याप्त मनुष्य, जो नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितनी नरकपृत्वीयों में उत्पन्न होता है ? वह सातों ही नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होता है ।
भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी - मनुष्य जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता
। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । उनमें छहों संहनन होते हैं । उनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल - पृथक्त्व की और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की होती है । शेष सब कथन यावत् भवादेश तक, संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के समान है । विशेष यह है, कि उनमें चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान विकल्प से होते हैं । केवलिसमुद्घात को छोड़कर शेष छह समुद्घात होते हैं । उनकी स्थिति और अनुबन्ध जघन्य मासपृथक्त्व उत्कृष्ट पूर्वकोटि होता है । शेष सब पूर्ववत् । संवेधकाल की अपेक्षा से जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक गमनागमन करता है ।
यदि वह मनुष्य जघन्यकाल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो उपर्युक्त सर्ववक्तव्यता कहना । विशेष यह कि काल की अपेक्षा से - जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चालीस हजार वर्ष । यदि वह मनुष्य, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त सर्व वक्तव्यता जानी । विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से - जघन्य मासपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम । यदि वह मनुष्य स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में भी यही