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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
यावत् अन्तराय कर्म तक जानना ।
भगवन् ! उदयप्राप्त ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का । इसी प्रकार नैरयिकों के विषय में जान लेना । इसी प्रकार वैमानिकों तक | और इसी प्रकार अनन्तराय कर्म तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! स्त्रीवेद का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का । भगवन् ! असुरकुमारों के स्त्रीवेद का बन्ध कितने प्रकार का है ? पूर्ववत् । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । विशेष यह कि जिसके स्त्रीवेद है, (उसके लिए ही यह जानना ।) इसी प्रकार पुरुषवेद एवं नपुंसकवेद के विषय में भी जानना और वैमानिकों तक कथन करना । विशेष यह है कि जिसके जो वेद हो, वही जानना ।
भगवन् ! दर्शनमोहनीय कर्म का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त अन्तर-रहित (बन्ध-कथन करना चाहिए ।) इसी प्रकार चारित्रमोहनीय के बन्ध के विषय में भी वैमानिकों तक (जानना चाहिए ।)
इस प्रकार इसी क्रम से औदारिकशरीर, यावत् कार्मणशरीर के, आहारसंज्ञा यावत् परिग्रहसंज्ञा के, कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या के, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि एवं सम्यग्मिथ्यादृष्टि के, आभिनिबोधिकज्ञान यावत् केवलज्ञान के, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान तथा विभंगज्ञान के पूर्ववत् तिन बंध है । भगवन् ! इसी प्रकार आभिनिबोधिकज्ञान के विषय का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! आभिनिबोधिकज्ञान यावत् केवलज्ञान, मतिअज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान, इन सब पदों के तीन-तीन प्रकार का बन्ध है ।
इन सब पदों का चौवीस दण्डकों के विषय में (बन्ध-विषयक) कथन करना । इतना विशेष है कि जिसके जो हो, वही जानना । यावत्-भगवन् ! वैमानिकों के विभंगज्ञान-विषय का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का । यथा-जीवप्रयोगबन्ध, अनन्तबन्ध और परम्परबन्ध । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-२० उद्देशक-८ | [७९३] भगवन् ! कर्मभूमियां कितनी हैं ? गौतम ! पन्द्रह हैं । पांच भरत, पांच ऐवत और पांच महाविदेह । भगवन् ! अकर्मभूमियां कितनी हैं ? गौतम ! तीस हैं । पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत,. पांच हविर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु । भगवन् ! अकर्मभूमियों में क्या उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीरूप काल हैं ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! भरत और ऐवत में क्या उत्सर्पिणी औ अवसर्पिणी रूप काल है ? हाँ, (गौतम !) है । भगवन् ! इन पांच महाविदेह क्षेत्रों में क्या उत्सर्पिणी अथवा अवसर्पिणी रूप काल है ? नहीं, वहाँ अवस्थित काल है ।
[७९४] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्रों में अरहन्त भगवन्त सप्रतिक्रमण पंच-महाव्रत वाले धर्म का उपदेश करते हैं ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं है । भरत तथा ऐवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम ये दो अरहन्त भगवन्त सप्रतिक्रमण पांच महाव्रतों वाले और शेष अरहन्त भगवन्त चातुर्याम धर्म का उपदेश करते हैं और पांच महाविदेह क्षेत्रों में भी चातुर्याम-धर्म का उपदेश करते हैं । भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में कितने