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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
वे ज्ञानावरणीय कर्म के अबन्धक नहीं; किन्तु एक जीव बन्धक है, अथवा अनेक जीव बन्धक हैं । इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर अन्तराय कर्म तक समझ लेना । विशेषतः (वे जीव) आयुष्य कर्म के बन्धक हैं, या अबन्धक ?; यह प्रश्न है । गौतम ! उत्पल का एक जीव बन्धक है, अथवा एक जीव अबन्धक है, अथवा अनेक जीव बन्धक हैं, या अनके जीव अबन्धक हैं, अथवा एक जीव बन्धक है, और एक अबन्धक है, अथवा एक जीव बन्धक और अनेक जीव अबन्धक हैं, या अनेक जीव बन्धक हैं और एक जीव अबन्धक है एवं अथवा अनेक जीव बन्धक हैं और अनेक जीव अबन्धक हैं । इस प्रकार ये आठ भंग होते हैं ।
___भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के वेदक हैं या अवेदक हैं ? गौतम ! वे जीव अवेदक नहीं, किन्तु या तो एक जीव वेदक है और अनेक जीव वेदक हैं । इसी प्रकार अन्तराय कर्म तक जानना । भगवन् ! वे जीव सातावेदक हैं, या असातावेदक हैं ? गौतम ! एक जीव सातावेदक है, अथवा एक जीव असातावेदक है, इत्यादि पूर्वोक्त आठ भंग । भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदयवाले हैं या अनुदयवाले हैं ? गौतम ! वे जीव अनुदयवाले नहीं हैं, किन्तु एक जीव उदयवाला है, अथवा वे उदय वाले हैं । इसी प्रकार अन्तराय कर्म तक समझ लेना । भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदीरक हैं या अनुदीरक हैं ? गौतम ! वे अनुदीरक नहीं; किन्तु एक जीव उदीरक है, अथवा अनेक जीव उदीरक हैं । इसी प्रकार अन्तराय कर्म तक जानना; परन्तु इतना विशेष है कि वेदनीय और आयुष्य कर्म में पूर्वोक्त आठ भंग कहने चाहिए ।
भगवन् ! वे उत्पल के जीव, कृष्णलेश्या वाले होते हैं, नीललेश्या वाले होते हैं, या कापोतलेश्या वाले होते हैं, अथवा तेजोलेश्या वाले होते हैं ? गौतम ! एक जीव कृष्णलेश्या वाला होता है, यावत् एक जीव तेजोलेश्या वाला होता है । अथवा अनेक जीव कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले अथवा तेजोलेश्या वाले होते हैं । अथवा एक कृष्णलेश्या वाला और एक नीललेश्या वाला होता है । इस प्रकार ये द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी और चतुःसंयोगी सब मिलाकर ८० भंग होते हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, अथवा सम्यग्-मिथ्यादृष्टि हैं ? गौतम ! वे सम्यग्दृष्टि नहीं, सम्यग्-मिथ्यादृष्टि भी नहीं, वह मात्र मिथ्यादृष्टि है, अथवा वे अनेक भी मिथ्यादृष्टि हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव ज्ञानी हैं, अथवा अज्ञानी हैं ? गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, किन्तु वह एक अज्ञानी है अथवा वे अनेक भी अज्ञानी हैं । भगवन् ! वे जीव मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं, अथवा काययोगी हैं ? गौतम ! वे मनोयोगी नहीं हैं, न वचनयोगी हैं, किन्तु वह एक हो तो काययोगी है और अनेक हों तो भी काययोगी हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव साकारोपयोगी हैं, अथवा अनाकारोपयोगी हैं ? गौतम ! वे साकारोपयोगी भी होते हैं और अनाकारोपयोगी भी। . भगवन् ! उन जीवों का शरीर कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला है ? गौतम ! उनका (शरीर) पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्शवाला है । जीव स्वयं वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श-रहित है । भगवन् ! वे जीव उच्छ्वासक हैं, निःश्वासक हैं, या उच्छ्वासक-निःश्वासक हैं ? गौतम ! (उनमें से कोई एक जीव उच्छ्वासक है, या कोई एक जीव निःश्वासक है, अथवा कोई एक जीव अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है, या अनेक जीव उच्छ्वासक हैं, या अनेक जीव निःश्वासक हैं, अथवा अनेक जीव अनुच्छ्वासक-निःश्वासक हैं अथवा एक उच्छ्वासक है और एक निःश्वासक है; इत्यादि । अथवा एक उच्छ्वासक और एक