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नमो नमो निम्मलदसणस्स
५२-भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति
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अंगसूत्र-५/२-हिन्दी अनुवाद
(शतक-११) [४९४] म्यारहवें शतक के बारह उद्देशक इस प्रकार हैं-(१) उत्पल, (२) शालूक, (३) पलाश, (४) कुम्भी, (५) नाडीक, (६) पद्म, (७) कर्णिका, (८) नलिन, (९) शिवराजर्षि, (१०) लोक, (११) काल और (१२) आलभिक ।
| शतक-११ उद्देशक-१ [४९५] उपपात, २. परिमाण, ३. अपहार, ४. ऊँचाई (अवगाहना), ५. बन्धक, ६. वेद, ७. उदय, ८. उदीरणा, ९. लेश्या, १०. दृष्टि, ११. ज्ञान । तथा
[४९६] १२. योग, १३. उपयोग, १४. वर्ण-रसादि, १५. उच्छ्वास, १६. आहार, १७. विरति, १८. क्रिया, १९. बन्धक, २०. संज्ञा, २१. कषाय, २२. स्त्रीवेदादि, २३. बन्ध ।
[४९७] २४. संज्ञी, २५. इन्द्रिय, २६. अनुबन्ध, २७. संवेध, २८. आहार, २९. स्थिति, ३०. समुद्घात, ३१. च्यवन और ३२. सभी जीवों का मूलादि में उपपात ।
[४९८] उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था । वहाँ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा- भगवन् ! एक पत्र वाला उत्पल एक जीव वाला है या अनेक जीववाला ? गौतम ! एक जीववाला है, अनेक जीव वाला नहीं । उसके उपरान्त जब उस उत्पल में दूसरे जीव उत्पन्न होते हैं, तब वह एक जीव वाला नहीं रह कर अनेक जीववाला बन जाता है । भगवन् ! उत्पल में वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, या तिर्यञ्चयोनिकों से अथवा मनुष्यों से या देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जीव नारकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, वे तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी और देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । “व्युत्क्रान्तिपद" के अनुसार वनस्पतिकायिक जीवों में यावत् ईशान-देवलोक तक के जीवों का उपपात होता है।
भगवन् ! उत्पलपत्र में वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्यतः एक, दो या तीन और उत्कृष्टतः संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन ! वे उत्पल के जीव एक-एक समय में एक-एक निकाले जाएँ तो कितने काल में पूरे निकाले जा सकते हैं ? गौतम ! एक-एक समय में एक-एक निकाले जाएँ और उन्हें असंख्य उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल तक निकाला जाय तो भी वे पूरे निकाले नहीं जा सकते ।
भगवन् ! उन (उत्पल के) जीवों की अवगाहना कितनी बड़ी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार योजन होती है ।
भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धक हैं या अबन्धक हैं ? गौतम !