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भगवती - ११/-/१/४९८
अनुच्छ्वासक - निःश्वासक है; इत्यादि । अथवा एक निःश्वासक और एक अनुच्छ्वासकनिःश्वासक है, इत्यादि । अथवा एक उच्छ्वासक, एक निःश्वासक और एक अनुच्छ्वासकनिःश्वासक है इत्यादि आठ भंग होते हैं । ये सब मिलकर २६ भंग होते हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव आहारक हैं या अनाहारक हैं ? गौतम ! कोई एक जीव आहारक है, अथवा कोई एक जीव अनाहारक हैं; इत्यादि आठ भंग कहने चाहिए ।
भगवन् ! क्या वे उत्पल के जीव विरत हैं, अविरत हैं या विरताविरत हैं ? गौतम ! वे उत्पल-जीवन तो सर्वविरत हैं और न विरताविरत हैं, किन्तु एक जीव अविरत है अथवा अनेक व भी अविरत हैं । भगवन् ! क्या वे उत्पल के जीव सक्रिय हैं या अक्रिय हैं ? गौतम ! वे अक्रिय नहीं हैं, किन्तु एक जीव भी सक्रिय है और अनेक जीव भी सक्रिय हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव सप्तविध बन्धक हैं या अष्टविध बन्धक हैं ? गौतम ! वे जीव सप्तविधबन्धक हैं या अष्टविधबन्धक हैं । यहाँ पूर्वोक्त आठ भंग कहना ।
भगवन् ! वे उत्पल के जीव आहारसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, या भयसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, अथवा मैथुनसंज्ञा के उपयोग वाले हैं या परिग्रहसंज्ञा के उपयोग वाले हैं ? गौतम ! वे आहारसंज्ञा के उपयोगवाले हैं, इत्यादि (लेश्याद्वार के समान) अस्सी भंग कहना । भगवन् ! वे उत्पल के जीव क्रोधकषायी हैं, मानकषायी हैं, मायाकषायी हैं अथवा लोभकषायी हैं ? गौतम ! यहाँ भी पूर्वोक्त ८० भंग कहना चाहिए ।
भगवन् ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेदी हैं, पुरुषवेदी हैं या नपुंसकवेदी हैं ? गौतम ! वे स्त्रीवेदवाले नहीं, पुरुषवेदवाले भी नहीं, परन्तु एक जीव भी नपुंसकवेदी है और अनेक जीव भी नपुंसकवेदी हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेद के बन्धक हैं, पुरुषवेद के बन्धक हैं या नपुंसकवेद के बन्धक हैं ? गौतम ! वे स्त्रीवेद के बन्धक हैं, या पुरुषवेद के बन्धक हैं अथवा नपुंसकवेद के बन्धक हैं । यहाँ उच्छ्वासद्वार के समान २६ भंग कहने चाहिए ।
भगवन् ! वे उत्पल के जीव संज्ञी हैं या असंज्ञी ? गौतम ! वे संज्ञी नहीं, किन्तु एक जीव भी असंज्ञी है और अनेक जीव भी असंज्ञी हैं ।
भगवन् ! वे उत्पल के जीव सेन्द्रिय हैं या अनिन्द्रिय ? गौतम ! वे अनिन्द्रिय नहीं, किन्तु एक जीव सेन्द्रिय है और अनेक जीव भी सेन्द्रिय हैं । भगवन् वह उत्पल का जीव उत्पल के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! वह जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः असंख्यात काल तक रहता है ।
भगवन् ! वह उत्पल का जीव, पृथ्वीकाय में जाए और पुनः उत्पल का जीव बने, इस प्रकार उसका कितना काल व्यतीत हो जाता है ? कितने काल तक गमनागमन करता रहता है ? गौतम ! भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट असंख्यात भव करता है कालादेश से जघन्य दो अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल रहता है, इतने काल तक गति - आगति करता है । भगवन् ! वह उत्पल का जीव, अप्काय के रूप में उत्पन्न होकर पुनः उत्पल में आए तो इसमें कितना काल व्यतीत हो जाता है ? कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! पृथ्वीकाय के समान भवादेश से और कालादेश से कहना । इसी प्रकार पृथ्वीकाय के गमनागमन अनुसार वायुकाय जीव तक कहना । भगवन् ! वह उत्पल का जीव, वनस्पति के जीव में जाए और वह पुनः उत्पल के जीव में आए, इस प्रकार वह कितने काल तक रहता है ? कितने काल तक