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भगवती - १८/-/७/७४८
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उत्कृष्ट पांच हजार वर्षों में क्षय कर देते हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! क्या ऐसे देव भी हैं, जो अनन्त कर्माशों को जघन्य एक लाख, दो लाख, या तीन लाख वर्षों में और उत्कृष्ट पांच लाख वर्षों में क्षय कर देते हैं ?
हे भगवन् ! ऐसे कौन-से देव हैं, जो अनन्त कर्माशों को जघन्य एक सौ वर्ष, यावत्पांच सौ वर्षों में क्षय करते हैं ? भगवन् ! ऐसे कौन-से देव हैं, जो यावत् पांच हजार वर्षों में अनन्त कर्माशों का क्षय करत देते हैं ? और हे भगवन् ! ऐसे कौन-से देव हैं, जो अनन्त कर्माशों को यावत् पांच लाख वर्षों में क्षय कर देते हैं ? गौतम ! वे वाणव्यन्तर देव हैं, जो अनन्त कर्माशों को एक सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं । असरेन्द्र को छोड़ कर शेष सब भवनपति देव अनन्त कर्मांशों को दो सौ वर्षों में, तथा असुरकुमार देव अनन्त कर्माशों को तीन सौ वर्षों में; ग्रह, नक्षत्र और तारारूप ज्योतिष्क देव चार सौ वर्षों में और ज्योतिषीन्द्र, ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य अनन्त कर्माशों को पाँच सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं । सौधर्म और ईशानकल्प के देव अनन्त कर्माशों को यावत् एक हजार वर्षों में खपा देते हैं । सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प के देव अनन्त कर्माशों को दो हजार वर्षों में खपा देते हैं । इस प्रकार आगे इसी अभिलाप के अनुसार- ब्रह्मलोक और लान्तककल्प के देव अनन्त कर्माशों को तीन हजार वर्षों में खपा देते हैं । महाशुक्र और सहस्त्रार देव अनन्त कर्माशों को चार हजार वर्षों में, आनतप्राणत, आरण और अच्युतकल्प के देव अनन्त कर्माशों को पांच हजार वर्षों में क्षय कर देते हैं । अधस्तन ग्रैवेयकत्रय के देव अनन्त कर्माशों को एक लाख वर्ष में, मध्यम ग्रैवेयकत्रय के देव अनन्त कर्माशों को दो लाख वर्षों में, और उपरिम ग्रैवेयकत्रय के देव अनन्त कर्माशों को तीन लाख वर्षों में क्षय करते हैं । विजय, वैजयंत, जयन्त और अपराजित देव अनन्त कर्माशों को चार लाख वर्षों में क्षय कर देते हैं और सर्वार्थसिद्ध देव, अपने अनन्त कर्माशों को पाँच लाख वर्षों में क्षय कर देते हैं । इसीलिए हे गौतम ! ऐसे देव हैं, जो अनन्त कर्माशों को जघन्य एक सौ, दो सौ या तीन सौ वर्षों में, यावत् पांच लाख वर्षों में क्षय करते हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' । शतक- १८ उद्देशक- ८
[७४९] राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! सम्मुख और दोनों ओर युगमात्र भूमि को देखदेख कर ईर्यापूर्वक गमन करते हुए भावितात्मा अनगार के पैर के नीचे मुर्गी का बच्चा, बतख का बच्चा अथवा कुलिंगच्छाय आ कर मर जाए तो, उक्त अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है या साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! यावत् उस भावितात्मा अनगार को, यावत् ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी नहीं लगती ।
भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि पूर्वोक्त भावितात्मा अनगार को यावत् साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती ? गौतम ! सातवें शतक के सप्तम उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए । यावत् अर्थ का निक्षेप करना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी बाहर के जनपद में यावत् विहार कर गए ।
[७५०] उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर में यावत् पृथ्वीशिलापट्ट था । उस गुणशीलक उद्यान के समीप बहुत-से अन्यतीर्थिक निवास करते थे । उन दिनों में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे, यावत् परिषद् वापिस लौट गई । उस काल और उस समय