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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
होगा । दूसरी बार सिंहों में उत्पन्न होगा । काल करके तीसरी बालुकाप्रभा नरकपृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होगा | वहाँ से निकल कर पक्षियों में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् शस्त्राघात से मरकर फिर दूसरी बार तीसरी बालुकाप्रभा पृथ्वी में उत्पनन होगा । वहाँ से यावत् शस्त्राघात से मर कर दूसरी बार पक्षियों में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् निकल कर सरीसृपों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र से मारा जा कर यावत् दूसरी बार भी शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके दूसरी बार पुनः सरीसृपों में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी की उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् निकल कर संज्ञीजीवों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र द्वारा मारा जाकर यावत् काल करके असंज्ञीजीवों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्राघात से यावत् काल करके दूसरी बार इसी रत्नप्रभापृथ्वी में पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिकरूप में उत्पन्न होगा।
वह वहाँ से निकल कर जो ये खेचरजीवों के भेद हैं, जैसे कि-चर्मपक्षी, लोमपक्षी, समुद्गकपक्षी और विततपक्षी, उनमें अनेक लाख बार मर-मर कर बार-बार वहीं उत्पन्न होता रहेगा । सर्वत्र शस्त्र से मारा जा कर दाह-वेदना से काल के अवसर में काल करके जो ये भुजपरिसर्प के भेद हैं, जैसे कि-गोह, नकुल इत्यादि यावत् जाहक आदि चौपाये जीवों में अनेक लाख बार मर कर बार-बार उन्हीं में उत्पन्न होगा । शेष सब खेचरवत् जानना, यावत् काल करके जो ये उरःपरिसर्प के भेद होते हैं, जैसे कि सर्प, अजगर, आशालिका और महोरग, आदि, इनमें अनेक लाख बार मर-मर कर बार-बार इन्हीं में उत्पन्न होगा । यावत् वहाँ से काल करके जो ये चतुष्पद जीवों के भेद हैं, जैसे कि एक खुर वाला, दो खुर वाला गण्डीपद और सनखपद, इनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा | वहाँ से यावत काल करके जो ये जलचरजीव-भेद हैं, जैसे कि-मत्स्य, कच्छप यावत् सुंसुमार इत्यादि, उनमें लाख बार उत्पन्न होगा । फिर वहां से यावत् काल करके जो ये चतुरिन्द्रिय जीवों के भेद हैं, जैसे कि-अन्धिक, पौत्रिक इत्यादि, यावत् गोमय-कीटों में अनेक लाख बार उत्पन्न होगा । फिर वहां से यावत् काल करके जो ये त्रीन्द्रियजीवों के भेद हैं, जैसे किउपचित यावत् हस्तिशौण्ड आदि, इनमें अनेक लाख बार मर कर पुनःपुनः उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके जो ये द्वीन्द्रिय जीवों के भेद हैं, जैसे कि पुलाकृमि यावत् समुद्दलिक्षा इत्यादि, इनमें अनेक लाख बार मर मर कर, पुनः पुनः उन्हीं में उत्पन्न होगा ।
... फिर वहाँ से यावत् काल करके जो ये वनस्पति के भेद हैं, जैसे कि वृक्ष, गुच्छ यावत् कुहुना इत्यादि; इनमें अनेक लाख बार मर-मर कर यावत् पुनः पुनः इन्हीं में उत्पन्न होगा । विशेषतया कटुरस वाले वृक्षों और बेलों में उत्पन्न होगा । सभी स्थानों में शस्त्राघात से वध होगा । फिर वहाँ से यावत् काल करके जो ये वायुकायिक जीवों के भेद हैं, जैसे कि पूर्ववायु, यावत् शुद्धवायु इत्यादि इनमें अनेक लाख बार मर कर पुनः पुनः उत्पन्न होगा । फिर वहाँ से काल करके जो ये तेजस्कायिक जीवों के भेद हैं, जैसे कि अंगार यावत् सूर्यकान्तमणिनिःसृत अग्नि इत्यादि, उनमें अनेक लाख बार मर-मर कर पुनः पुनः उत्पन्न होगा । फिर वहाँ से यावत् काल करके जो ये अप्कायिक जीवों के भेद हैं, यथा-ओस का पानी, यावत् खाई का पानी इत्यादि; उनमें अनेक लाख बार-उत्पन्न होगा । सभी स्थानों में शस्त्र द्वारा घात होगा । वहाँ से यावत् काल करके जो ये पृथ्वीकायिक जीवों के भेद हैं, जैसे कि पृथ्वी, शर्करा यावत् सूर्यकान्तमणि;