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________________ भगवती-१५/-/-/६५८ १३५ उनमें अनेक लाख बार उत्पन्न होगा, विशेषतया खर-बादर पृथ्वीकाकाय में उत्पन्न होगा । सर्वत्र शस्त्र से वध होगा । वहाँ से यावत् काल करके राजगृह नगर के बाहर वेश्यारूप में उत्पन्न होगा । वहाँ शस्त्र से वध होने से यावत् काल करके दूसरी बार राजगृह नगर के भीतर (विशिष्ट) वेश्या के रूप में उत्पन्न होगा। [६५९] वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में विन्ध्य-पर्वत के पादमूल में बेभेल सनिवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा। वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता पिता उचित शुल्क और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप में अर्पण करेंगे । वह उसकी भार्या होगी । वह इष्ट, कान्त, यावत् अनुमत, बहुमूल्य सामान के पिटारे के समान, तेल की कुप्पी के समान अत्यन्त सुरक्षित, वस्त्र की पेटी के समान सुसंगृहीत, रत्न के पिटारे के समान सुरक्षित तथा शीत, उष्ण यावत् परीषह उपसर्ग उसे स्पर्श न करें, इस दृष्टि से अत्यन्त संगोपित होगी । वह ब्राह्मण-पुत्री गर्भवती होगी और एक दिन किसी समय अपने ससुराल से पीहर ले जाई जाती हुई मार्ग में दावाग्नि की ज्वाला से पीड़ित होकर काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के अग्निकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगी। वहाँ से च्यव कर वह मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा । फिर वह केवलबोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा । तत्पश्चात् मुण्डित होकर अगारवास का परित्याग करके अनगार धर्म को प्राप्त करेगा । किन्तु वहाँ श्रामण्य की विराधना करके काल के अवसर में काल करके दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यव कर वह मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि आदि पूर्ववत्, यावत् प्रव्रजित होकर चारित्र की विराधना करके काल के समय में काल करके दक्षिणनिकाय के नागकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यव कर वह मनुष्यशरीर प्राप्त करेगा, इत्यादि पूर्ववत् । दक्षिणनिकाय सुपर्णकुमार देवों में उत्पन्न होगा, फिर दक्षिणनिकाय के विद्युत्कुमार देवों में उत्पन्न होगा, इसी प्रकार अग्निकुमार देवों को छोड़कर यावत् के स्तनितकुमार देवों में देवरूप से उत्पन्न होगा । वह वहाँ से यावत् निकल कर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, यावत् श्रामण्य की विराधना करके ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होगा । वह वहाँ से च्यव कर मनुष्य-शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा । यावत् चारित्र की विराधना किये बिना काल के अवसर में काल करके सौधर्म कल्प में देव के रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यव कर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि भी प्राप्त करेगा । वहाँ भी वह चारित्र की विराधना किये बिना काल करके ईशान देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होगा । वह वहाँ से च्यव कर मनुष्य-शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि प्राप्त करेगा । वहाँ भी वह चारित्र की विराधना किये बिना काल करके सनत्कुमार कल्प में देवरूप में उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यव कर, सनत्कुमार के देवलोक के समान ब्रह्मलोक, महाशुक्र, आनत और आरण देवलोकों में उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिए । वहाँ से च्यव कर वह मनुष्य होगा, यावत् चारित्र की विराधना किये बिना काल करके सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देव के रूप में उत्पन्न होगा । ___ वहाँ से बिना अन्तर के च्यव कर महाविदेहक्षेत्र में, जो ये कुल हैं, जैसे कि आढ्य यावत् अपराभूत कुल; तथाप्रकार के कुलों में पुरुष रूप से उत्पन्न होगा । दृढ़प्रतिज्ञ के समान
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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