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भगवती-१५/-/-/६५७
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में ही काल कर गए थे । उस समय समर्थ होते हुए भी सर्वानुभूति अनगार ने तुम्हारे अपराध को सम्यक् प्रकार से सहन कर लिया था, क्षमा कर दिया था, तितिक्षा की थी और उसे अध्यासित किया था । इसी प्रकार सुनक्षत्र अनगार ने भी समर्थ होते हुए यावत् अध्यासित किया था । उस समय श्रमण भगवान् महावीर ने समर्थ होते हुए भी यावत् अध्यासित कर लिया था । किन्तु मैं इस प्रकार सहन यावत अध्यासित नहीं करूँगा । मैं तुम्हें अपने तप-तेज से घोड़े, स्थ और सारथी सहित एक ही प्रहार में कूटाघात के समान राख का ढेर कर दूंगा । जब सुमंगल अनगार विमलवाहन राजा से ऐसा कहेंगे, तब वह एकदम कुपित यावत् क्रोध से आगबबूला हो उठेगा और फिर तीसरी बार भी स्थ के सिरे से टक्कर मार कर सुमंगल अनगार को नीचे गिरा देगा । तब सुमंगल अनगार अतीव क्रुद्ध यावत् कोपावेश से मिसमिसाहट करते हुए आतापनाभूमि से नीचे उतरेंगे और तैजससमुद्घात करके सात-आठ कदम पीछे हटेंगे, फिर विमलवाहन राजा को अपने तप-तेज से घोड़े, रथ और सारथि सहित एक ही प्रहार से यावत राख का ढेर कर देंगे ।
. भगवन् ! सुमंगल अनगार, अश्व, स्थ और सारथि सहित (राजा विमलवाहन को) भस्म का ढेर करके, स्वयं काल करके कहाँ जाएंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे? गौतम ! सुमंगल अनगार बहुतसे उपवास, बेला, तेला, चौला, पंचौला यावत् विचित्र प्रकार के तपश्चरणों से अपनी आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय का पालन करेंगे । फिर एक मास की संलेखना से आठ भक्त अनशन का यावत् छेदन करेंगे और आलोचना एवं प्रतिक्रमण करके समाधिप्राप्त होकर काल के अवसर में काल करेंगे । फिर वे ऊपर चन्द्र, सूर्य, यावत् ग्रैवेयक विमानवासों का अतिक्रमण करके सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देवरूप से उत्पन्न होंगे । वहाँ सुमंगल देव की अजघन्यानुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति होगी । भगवन् ! वह सुमंगलदेव उस देवलोक से च्यव कर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह यावत् महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर, यावत् सर्वदुखों का अन्त करेगा ।
_ [६५८] भगवन् ! सुमंगल अनगार द्वारा अश्व, रथ और सारथि-सहित भस्म किया हुआ विमलवाहन राजा कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह अधःसप्तम पृथ्वी में, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् उद्धर्त कर मत्स्यों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र के द्वारा वध होने पर दाहज्वर की पीड़ा से काल करके दूसरी बार फिर अधःसप्तम पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नारकवासों में नैरयिकरूप में उत्पन्न होगा । वहाँ से उद्वर्त्त कर फिर सीधा दूसरी बार मत्स्यों में उत्पन्न होगा । वहां भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल कर छठी तमःप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा ।
वहाँ से वह यावत् निकल कर स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शास्त्राघात से मर कर दाहज्वर की वेदना से यावत् दूसरी बार पुनः छठी तमःप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक होगा । पुनःदूसरी बार स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके पंचम धूमप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला नैरयिक होगा । मर कर उरःपरिसों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्राघात से यावत् मर कर दूसरी बार पंचम नरकपृथ्वी में, यावत् पुनः उरःपस्सिों में उत्पन्न होगा । वहाँ से यावत् काल करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होगा, यावत् वहाँ से निकलकर सिंहों में उत्पन्न होगा । वहाँ भी शस्त्र द्वारा मारा जाकर यावत् दूसरी बार चौथे नरक में उत्पन्न