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________________ १२४ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद मास के अन्त में छद्मस्थ अवस्था में ही काल कर जाओगे ।' इस पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने मंखलिपुत्र गोशालक से इस प्रकार कहा - 'हे गोशालक ! तेरी तपोजन्य तेजोलेश्या से पराभव को प्राप्त होकर मैं छह मास के अन्त में, यावत् काल नहीं करूंगा, किन्तु अगले सोलह वर्ष - पर्यन्त जिन अवस्था में गन्ध-हस्ती के समान विचरूंगा । परन्तु हे गोशालक ! तू स्वयं अपनी तेजोलेश्या से पराभव को प्राप्त होकर सात रात्रियों के अन्त में पित्तज्वर से शारीरिक पीड़ाग्रस्त होकर यावत् छद्मस्थ अवस्था में ही काल कर जाएगा ।' तदनन्तर श्रावस्ती नगरी के श्रृंगाटक यावत् राजमार्गों पर बहुत से लोग परस्पर एक दूसरे से कहने लगे, यावत् प्ररूपणा करने लगे - देवानुप्रियो ! श्रावस्ती नगरी के बाहर कोष्ठक चैत्य में दो जिन परस्पर संलाप कर रहे हैं । एक कहता है- 'तू पहले काल कर जाएगा ।' दूसरा उसे कहता है - 'तू पहले मर जाएगा ।' इन दोनों में कौन सम्यग्वादी है, कौन मिथ्यावादी है ? उनमें से जो प्रधान मनुष्य था, उसने कहा - ' श्रमण भगवान् महावीर सत्यवादी हैं, मंखलिपुत्र गोशालक मिथ्यावादी है ।' [६५२] श्रमण भगवान् महावीर ने कहा - ' हे आर्यो ! जिस प्रकार तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, त्वचा राशि, तुषराशि, भूसे की राशि, गोमय की राशि और अवकर राशि को अग्नि से थोड़ा-सा जल जाने पर, आग में झोंक देने पर एवं अग्नि से परिणामान्तर होने पर उसका तेज हत हो जाता है, उसका तेज चला जाता है, उसका तेज नष्ट और भ्रष्ट हो जाता है, उसका तेज लुप्त एवं विनष्ट हो जाता है; इसी प्रकार मंखलिपुत्र गोशालक द्वारा मेरे वध के लिए अपने शरीर से तेजोलेश्या निकाल देने पर, अब उसका तेज हत हो गया है, यावत् उसका तेज विनष्ट हो गया है । इसलिए, आर्यो ! अब तुम भले ही मंखलिपुत्र गोशालक को धर्मसम्बन्धी प्रतिनोदना से प्रति प्रेरित करो, धर्मसम्बन्धी प्रतिस्मारणा करा कर स्मृति कराओ । फिर धार्मिक प्रत्युपचार द्वारा उसका प्रत्युपचार करो, इसके बाद अर्थ, हेतु, प्रश्न व्याकरण और कारणों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछ कर उसे निरुत्तर कर दो ।' जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ऐसा कहा, तब उन श्रमण-निर्ग्रन्थों ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना - नमस्कार किया । फिर जहाँ मंखलिपुत्र गोशालक था, वहाँ आए और उसे धर्म-सम्बन्धी प्रतिप्रेरणा की धर्मसम्बन्धी प्रतिस्मारणा की, तथा धार्मिक प्रत्युपचार से उसे तिरस्कृत किया, एवं अर्थ, हेतु प्रश्न, व्याकरण और कारणों से उसे निरुत्तर कर दिया । इसके बाद गोशालक मंखलिपुत्र अत्यन्त कुपित हुआ यावत् मिसमिसाता हुआ क्रोध से अत्यन्त प्रज्वलित हो उठा । किन्तु अब वह श्रमण-निर्ग्रन्थों के शरीर को कुछ भी पीड़ा या उपद्रव पहुँचाने अथवा छविच्छेद करने में समर्थ नहीं हुआ । जब आजीविक स्थविरों ने यह देखा कि श्रमण निर्ग्रन्थों द्वारा धर्म-सम्बन्धी प्रतिप्रेरणा, से यावत् गोशालक को निरुत्तर कर दिया गया है, जिससे गोशालक अत्यन्त कुपित यावत् मिस मिसायमान होकर क्रोध से प्रज्वलित हो उठा, किन्तु श्रमण-निर्ग्रन्थों के शरीर को तनिक भी पीड़ित या उपद्रवित नहीं कर सका एवं उनका छविच्छेद नहीं कर सका, तब कुछ आजीविक स्थविर गोशालक मंखलिपुत्र के पास से अपने आप ही चल पड़े । वहां से चल कर वे श्रमण भगवान् महावीर के पास आ गए । श्रमण भगवान् महावीर को दाहिनी ओर से तीन वार प्रदक्षिणा की और उन्हें वन्दना - नमस्कार किया । तत्पश्चात् वे श्रमण भगवान् महावीर का आश्रय स्वीकार
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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