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भगवती-१४/-/१०/६३६
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| शतक-१४ उद्देशक-१० । [६३६] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी छास्थ को जानते-देखते हैं ? हाँ (गौतम !) जानते देखते हैं । भगवन् ! केवलज्ञानी, छद्मस्थ के समान सिद्ध भगवन् भी छद्मस्थ को जानते-देखते हैं ? हाँ, (गौतम !) जानते-देखते हैं । भगवन ! क्या केवलज्ञानी, आधोवधिक को जानते-देखते हैं ? हाँ, गौतम ! वे जानते-देखते हैं । इसी प्रकार परमावधिज्ञानी को भी (केवली एवं सिद्ध जानते-देखते हैं,) । इसी प्रकार केवलज्ञानी एवं सिद्ध यावत् केवलज्ञानी को जानते-देखते हैं । इसी प्रकार केवलज्ञानी भी सिद्ध को जानते-देखते हैं । किन्तु प्रश्न यह है कि जिस प्रकार केवलज्ञानी सिद्ध को जानते-देखते हैं, क्या उसी प्रकार सिद्ध भी (दूसरे) सिद्ध को जानते-देखते हैं ? हाँ, (गौतम !) वे जानते-देखते हैं ।
___भगवन् ! क्या केवलज्ञानी बोलते हैं, अथवा प्रश्न का उत्तर देते हैं ? हाँ, गौतम ! वे बोलते भी हैं और प्रश्न का उत्तर भी देते हैं । भगवन् ! केवली की तरह क्या सिद्ध भी बोलते हैं और प्रश्न का उत्तर देते हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं ? गौतम ! केवलज्ञानी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य एवं पुरुषकार-पराक्रम से सहित हैं, जबकि सिद्ध भगवान् उत्थानादि यावत् पुरुषकार-पराक्रम से रहित हैं । इस कारण से, हे गौतम ! सिद्ध भगवान् केवलज्ञानी के समान नहीं बोलते और न प्रश्न का उत्तर देते हैं ।
भगवन् ! केवलज्ञानी अपनी आँखें खोलते हैं, अथवा मूंदते हैं ? हाँ, गौतम ! वे आँखें खोलते और बंद करते हैं । इसी प्रकार सिद्ध के विषय में पूर्ववत् इन दोनों बातों का निषेध समझना चाहिए । इसी प्रकार (केवलज्ञानी शरीर को) संकुचित करते हैं और पसारते भी हैं । इसी प्रकार वे खड़े रहते हैं; वसति में रहते हैं एवं निषीधिका करते हैं ।
भगवन् ! क्या केवलज्ञानी रत्नप्रभापृथ्वी को 'यह रत्नप्रभापृथ्वी है' इस प्रकार जानतेदेखते हैं ? हाँ (गौतम !) वे जानते-देखते हैं । भगवन् ! केवली की तरह क्या सिद्ध भी, यह रत्नप्रभापृथ्वी है, इस प्रकार जानते-देखते हैं ? हाँ, (गौतम !) वे जानते-देखते हैं । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक समझना । भगवन् ! क्या केवलज्ञानी सौधर्मकल्प को 'यह सौधर्मकल्प है'इस प्रकार जानते-देखते हैं ? हाँ, गौतम ! है । इसी प्रकार यावत् अच्युतकल्प के विषय में कहना | भगवन् ! क्या केवली भगवान् ग्रैवेयकविमान को 'ग्रैवेयकविमान है' इस प्रकार जानतेदेखते हैं ? हाँ, गौतम! है | इसी प्रकार (पांच) अनुत्तर विमानों के विषय में (कहना।) भगवन ! क्या केवलज्ञानी ईषत्प्राग्भारापृथ्वी को 'ईषत्प्राग्भारापृथ्वी है' इस प्रकार जानते-देखते हैं ? (हाँ, गौतम !) है ।
भगवन् ! क्या केवलज्ञानी परमाणुपुद्गल को 'यह परमाणुपुद्गल है' इस प्रकार जानतेदेखते हैं ? हा गौतम ! है । इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में समझना चाहिए । इसी प्रकार यावत्-'यह अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है' इसी प्रकार जानते-देखते हैं, क्या वैसे ही सिद्ध भी अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को–'अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है', इस प्रकार जानते-देखते हैं ? हाँ, (गौतम !) वे जानते-देखते हैं । भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक-१४ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण