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________________ १०८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद यावत् प्रभासित होते है ? गौतम चन्द्र और सूर्य देवो के विमानो से बाहर नीकली हुई लेश्याए प्रकाशीत यावत् प्रभासीत होती है, जिनसे सरूपी सकर्म लेश्य पुद्गल यावत् प्रभासित होते है । [६३२] भगवन् ! नैरयिकों के आत्त (सुखकारक) पुद्गल होते हैं अथवा अनात्त (दुःखकारक) पुद्गल होते हैं ? गौतम ! उसके आत्त पुद्गल नहीं होते, अनात्त पुद्गल होते हैं । भगवन् ! असुरकुमारों के आत्त पुद्गल होते हैं, अथवा अनात्त ? गौतम ! उनके आत्त पुद्गल होते हैं, अनात्त पुद्गल नहीं होते । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के आत्त पुद्गल होते हैं अथवा अनात्त ? गौतम ! उनके आत्त पुद्गल भी होते हैं और अनात्त पुद्गल भी होते हैं । इसी प्रकार मनुष्यों तक कहना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में असुरकुमारों के समान कहना। भगवन् ! नैरयिकों के पुद्गल इष्ट होते हैं या अनिष्ट होते हैं ? गौतम ! उनके पुद्गल इष्ट नहीं होते, अनिष्ट पुद्गल होते हैं । जिस प्रकार आत्त पुद्गलों के विषय में कहा हैं, उसी प्रकार इष्ट, कान्त, प्रिय तथा मनोज्ञ पुद्गलों के विषय में कहना चाहिए । [६३३] भगवन् महर्द्धिक यावत् महासुखी देव क्या हजार रूपों की विकुर्वणा करके, हजार भाषाएँ बोलने में समर्थ है ? हाँ, (गौतम !) वह समर्थ है । भगवन् ! वह एक भाषा है या हजार भाषाएँ हैं ? गौतम ! वह एक भाषा है, हजार भाषाएँ नहीं । [६३४] उस काल, उस समय में भगवान् गौतम स्वामी ने तत्काल उदित हुए जासुमन नामक वृक्ष के फूलों के पुंज के समान लाल बालसूर्य को देखा । सूर्य को देखकर गौतमस्वामी को श्रद्धा उत्पन्न हुई, यावत् उन्हें कौतूहल उत्पन्न हुआ, फलतः जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके निकट आए और यावत् उन्हें वन्दन-नमस्कार किया और पूछा-भगवन् ! सूर्य क्या है ? तथा सूर्य का अर्थ क्या है ? गौतम ! सूर्य शुभ पदार्थ है तथा सूर्य का अर्थ भी शुभ है । भगवन् ! 'सूर्य' क्या है और ‘सूर्य की प्रभा' क्या है ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार छाया के और लेश्या के विषय में जानना । [६३५] भगवन् ! जो ये श्रमण निर्ग्रन्थ आर्यत्वयुक्त होकर विचरण करते हैं, वे किसकी तेजोलेश्या का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! एक मास की दीक्षापर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ वाणव्यन्तर देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है; दो मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमणनिर्ग्रन्थ असुरेन्द्र के सिवाय (समस्त) भवनवासी देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है । इसी प्रकार तीन मास की पर्यायवाला, (असुरेन्द्र-सहित) असुरकुमार देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है । चार मास की पर्यायवाला ग्रहगण-नक्षत्र-तारारूप ज्योतिष्क देवों की, पांच मास की पर्यायवाला ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य की, छह मास की पर्यायवाला सौधर्म और ईशानकल्पवासी देवों की, सात मास की पर्यायवाला सनत्कुमार और माहेन्द्र देवों की, आठ मास की पर्यायवाला ब्रह्मलोक और लान्तक देवों की, नौ मास की पर्यायवाला महाशुक्र और सहस्त्रार देवों की, दस मास की पर्यायवाला आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवों की, ग्यारह मास की पर्यायवाला ग्रैवेयक देवों की और बारह मास की पर्यायवाला अनुत्तरौपपातिक देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर जाता है । इसके बाद शुक्ल एवं परम शुक्ल हो कर फिर वह सिद्ध होता है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है । भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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