________________
भगवती-१४/-/८/६२७
१०७
करते हैं कि अम्बड पब्रिाजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में भोजन करता है तथा रहता है, (इत्यादि प्रश्न) । हाँ गौतम ! यह सत्य है; इत्यादि औपपातिकसूत्र में कथित अम्बड-सम्बन्धी वक्तव्यता, यावत्-महर्द्धिक दृढप्रतिज्ञ होकर सर्व दुःखों का अन्त करेगा।
[६२८] भगवन् ! किसी को बाधा-पीड़ा नहीं पहुँचाने वाले अव्याबाध देव हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! अव्याबाधदेव, अव्याबाधदेव किस कारण से कहे जाते हैं ? गौतम! प्रत्येक अव्याबाधदेव, प्रत्येक पुरुष की, प्रत्येक आँख की पलक पर दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवधुति, दिव्य देवानुभाव और बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्यविधि दिखलाने में समर्थ है । ऐसा करके वह देव उस पुरुष को किंचित् मात्र भी आबाधा या व्याबाधा नहीं पहुंचाता और न उसके अवयव का छेदन करता है । इतनी सूक्ष्मता से वह देव नाट्यविधि दिखला सकता है । इस कारण, हे गौतम ! वे अव्याबाधदेव कहलाते हैं ।
[६२९] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, अपने हाथ में ग्रहण की हुई तलवार से, किसी पुरुष का मस्तक काट कर कमण्डलु में डालने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! है । भगवन् ! वह किस प्रकार डालता है ? गौतम ! शक्रेन्द्र उस पुरुष के मस्तक को छिन्न-भिन्न करके डालता है । या भिन्न-भिन्न करके डालता है । अथवा वह कूट-कूट कर डालता है । या चूर्ण कर करके डालता है । तत्पश्चात् शीघ्र ही मस्तक के उन खण्डित अवयवों को एकत्रित करता है और पुनः मस्तक बना देता है । इस प्रक्रिया में उक्त पुरुष के मस्तक का छेदन करते हुए भी वह (शक्रेन्द्र) उस पुरुष को थोड़ी या अधिक पीड़ा नहीं पहुँचाता । इस प्रकार सूक्ष्मतापूर्वक मस्तक काट कर वह उसे कमण्डलु में डालता है । -
[६३०] भगवन् ! क्या जृम्भक देव होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं । भगवन् ! वे जृम्भक देव किस कारण कहलाते हैं ? गौतम ! जम्भक देव, सदा प्रमोदी, अतीव क्रीडाशील, कन्दर्प में रत और मोहन शील होते हैं । जो व्यक्ति उन देवों को क्रुद्ध हुए देखता है, वह महान् अपयश प्राप्त करता है और जो उन देवों को तुष्ट हुए देखता है, वह महान् यश को प्राप्त करता है । इस कारण, हे गौतम ! वे जृम्भक देव कहलाते हैं।
भगवन् ! जृम्भक देव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दस प्रकार के । अन्न-जृम्भक, पानजृम्भक, वस्त्र-जृम्भक, लयन-जृम्भक, शयन-जृम्भक, पुष्प-जृम्भक, फल-जृम्भक, पुष्प-फलजृम्भक, विद्या-जृम्भक और अव्यक्त-जृम्भक । भगवन् ! जृम्भक देव कहाँ निवास करते हैं ? गौतम! सभी दीर्घ वैताढ्य पर्वतों में, चित्र-विचित्र यमक पर्वतों में तथा कांचन पर्वतों में निवास करते हैं । भगवन् ! जृम्भक देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! एक पल्योपम की। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-१४ उद्देशक-९ । [६३१] भगवन् ! अपनी कमलेश्या को नहीं जानने-देखने वाला भावितात्मा अनगार, क्या सरूपी (सशरीर) और कर्मलेश्या-सहित जीव को जानता-देखता है ? हाँ, गौतम ! भावितात्मा अनगार, जो अपनी कर्मलेश्या को नहीं जानता-देखता, वह सशरीर एवं कर्मलेश्या वाले जीव को जानता-देखता है । भगवन् ! क्या सरूपी, सकर्मलेश्य पुद्गलस्कन्ध अवभासित यावत् प्रभासित होते हैं ? हा गौतम होते है । भगवन् ! वे सरूपी कर्मलेश्य पुद्गल कौन से है, जो अवभासित