________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
वर्तमानकाल में एक समय तक...? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! पूर्वोक्त कथनानुसार जानना । इसी प्रकार अनन्त और शाश्वत अनागत काल में एक समय तक, (इत्यादि प्रश्नोत्तर) । भगवन् ! यह स्कन्ध अनन्त शाश्वत अतीत काल में, एक समय तक, इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् गौतम ! पुद्गल के अनुसार स्कन्ध के विषय में कहना ।
१००
[६०८] भगवन् ! क्या यह जीव अनन्त और शाश्वत अतीत काल में, एक समय में दुःखी, एक समय में अदुःखी - तथा एक समय में दुःखी और अदुःखी था ? तथा पहले करण द्वारा अनेकभाव वाले अनेकभूत परिणाम से परिणत हुआ था ? और इसके बाद वेदनीयकर्म की निर्जरा होने पर जीव एकभाव वाला और एकरूप वाला था ? हाँ, गौतम ! यह जीव... यावत् एकरूप वाला था । इसी प्रकार शाश्वत वर्तमान काल के विषय में भी समझना चाहिए । अनन्त अनागतकाल के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए ।
[६०९] भगवन् ! परमाणु- पुद्गल शाश्वत है या अशाश्वत ? गौतम ! वह कथञ्चित् शाश्वत है और कथंचित् अशाश्वत है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! द्रव्यार्थरूप से शाश्वत है और वर्ण यावत् स्पर्श-पर्यायों की अपेक्षा से अशाश्वत है । हे गौतम! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि यावत् कथंचित् अशाश्वत है ।
[६१०] भगवन् ! परमाणु- पुद्गल चरम है, या अचरम है ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा चरम नहीं, अचरम है; क्षेत्र की अपेक्षा कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है; काल की अपेक्षा कदाचित् चरम है और कदाचित् अचरम है तथा भावादेश से भी कथंचित् चरम है और कथंचित अचरम है ।
[६११] भगवन् ! परिणाम कितने प्रकार का कहा है ? गौतम ! दो प्रकार का । यथाजीवपरिणाम और अजीवपरिणाम । इस प्रकार यहाँ परिणामपद कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक - १४ उद्देशक - ५
[६१२] भगवन् ! नैरयिक जीव अग्निकाय के मध्य में हो कर जा सकता है ? गौतम ! कोई नैयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता । भगवन् ! यह किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के हैं यथा-विग्रहगति-समापन्नक और अविग्रहगति - समापन्नक । उनमें
विग्रहगति - समापन्नक नैरयिक हैं, वे अनिकाय के मध्य में होकर जा सकते हैं । भगवन् ! क्या वे अग्नि से जल जाते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि उन पर अग्निरूप शस्त्र नहीं चल सकता । उनमें से जो अविग्रहगतिसमापन्नक नैरयिक हैं वे अग्निकाय के मध्य में होकर नहीं जा सकते, इसलिए हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि कोई नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता ।
भगवन् ! असुरकुमार देव अनिकाय के मध्य में हो कर जा सकते हैं ? गौतम ! कोई जा सकता है और कोई नहीं जा सकता । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-विग्रहगति - समापन्नक और अविग्रहगति - समापन्नक । उनमें से जो विग्रहगति समापन्नक असुरकुमार हैं, वे नैरयिकों के समान हैं, यावत् उन पर अग्निशस्त्र असर नहीं कर सकता । उनमें जो अविग्रहगति समापन्नक असुरकुमार हैं, उनमें से कोई