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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
यह बात सत्य है, इसलिए कही है, किन्तु हमने आत्म भाव के वश होकर नहीं कही ।
हे भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों के प्रश्नों के ये और इस प्रकार के उत्तर देने में समर्थ हैं, अथवा असमर्थ हैं ? भगवन् ! उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में वे सम्यकरूप से ज्ञानप्राप्त हैं, अथवा असम्पन्न या अनभ्यस्त हैं ? हे भगवन् ! उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में वे उपयोग वाले हैं या उपयोग वाले नहीं हैं ? भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में विशिष्ट ज्ञानवान् हैं, अथवा विशेष ज्ञानी नहीं हैं कि आर्यो ! पूर्वतप से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, तथा पूर्वसंयम से, कर्मिता से और संगिता (आसक्ति) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं । यह बात सत्य है, इसलिए हम कहते हैं, किन्तु अपने अहंभाव वश नहीं कहते हैं ?
हे गौतम ! वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को इस प्रकार के उत्तर देने में समर्थ हैं, असमर्थ नहीं; यावत् वे सम्यक् रूप से सम्पन्न हैं अथवा अभ्यस्त हैं; असम्पन्न या अनभ्यस्त नहीं; वे उपयोग वाले हैं, अनुपयोग वाले नहीं; वे विशिष्ट ज्ञानी हैं, सामान्य ज्ञानी नहीं । यह बात सत्य है, इसलिए उन स्थविरों ने कही है, किन्तु अपने अहंभाव के वश होकर नहीं कही । हे गौतम ! मैं भी इसी प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बताता हूँ और प्ररूपणा करता हूँ कि पूर्वतप के कारण से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, पूर्वसंयम के कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, कर्मिता से देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं तथा संगिता (आसक्ति) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं । आर्यो ! पूर्वतप से, पूर्वसंयम से, कर्मिता और संगिता से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं । यही बात सत्य है; इसलिए उन्होंने कही है, किन्तु अपनी अहंता प्रदर्शित करने के लिए नहीं कही ।
[१३५] भगवन् ! तथारूप श्रमण या माहन की पर्युपासना करने वाले मनुष्य को उसकी पर्युपासना का क्या फल मिलता है ? गौतम ! तथारूप श्रमण या माहन के पर्युपासक को उसकी पर्युपासना का फल होता है-श्रवण ।
भगवन् ! उस श्रवण का क्या फल होता है ? गौतम ! श्रवण का फल ज्ञान है । भगवन् ! उन ज्ञान का क्या फल है ? गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान है । भगवन् ! उस विज्ञान का क्या फल होता है ? गौतम ! विज्ञान का फल प्रत्याख्यान है । भगवन् ! प्रत्याख्यान का क्या फल होता है ? गौतम ! प्रत्याख्यान का फल संयम है | भगवन् ! संयम का क्या फल होता है ? गौतम ! संयम का फल संवर है । इसी तरह अनाश्रवत्व का फल तप है, तप का फल व्यवदान (कर्मनाश) है और व्यवदान का फल अक्रिया है । भगवन् ! उस अक्रिया का क्या फल है ? गौतम ! अक्रिया का अन्तिम फल सिद्धि है ।
[१३६] (पर्युपासना का प्रथम फल) श्रवण, (श्रवण का फल) ज्ञान, (ज्ञान का फल) विज्ञान, (विज्ञान का फल) प्रत्याख्यान, (प्रत्याख्यान का फल) संयम, (संयम का फल) अनाश्रवत्व, (अनाश्रवत्व का फल) तप, (तप का फल) व्यवदान, (व्यवदान का फल) अक्रिया, और (अक्रिया का फल) सिद्धि है ।
[१३७] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि 'राजगृह नगर के बाहर वैभारगिरि के नीचे एक महान् (बड़ा भारी) पानी का ह्रद है । उसकी लम्बाई-चौड़ाई अनेक योजन है । उसका अगला भाग अनेक प्रकार के