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भगवती-१/-/२/२७
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असंज्ञिभूत हैं, वे (अपेक्षाकृत) अल्पवेदना वाले हैं । इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सब नारक समान वेदना वाले नहीं हैं ।
हे भगवन् ! क्या सभी नैरयिक समानक्रिया वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम नारक तीन प्रकार के कहे गए हैं यथा-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्-मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि) इनमें जो सम्यग्दष्टि हैं, उनके चार क्रियाएँ कही गई हैं, जैसे कि-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानक्रिया । इनमें जो मिथ्यादृष्टि हैं, उनके पांच क्रियाएँ कही गई हैं, वे इस प्रकारआरम्भिकी से लेकर मिथ्यादर्शनप्रत्यया । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्याद्दष्टि के भी पांचों क्रियाएँ समझनी चाहिए । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सब नारक समानक्रिया वाले नहीं हैं ।
भगवन् ! क्या सभी नारक समान आयुष्य वाले हैं और समोपपन्नक-एक साथ उत्पन्न होने वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नारक जीव चार प्रकार के हैं । वह इस प्रकार-समायुष्क समोपपन्नक (समान आयु वाले और एक साथ उत्पन्न हुए), समायुष्क विषमोपपन्नक (समान आयु वाले और पहले-पीछे उत्पन्न हुए), विषमायुष्क समोपपन्नक (विषम आयु वाले, किन्तु एक साथ उत्पन्न हुए), और विषमायुष्क-विषमोपपन्नक (विषम आयु वाले और पहले-पीछे उत्पन्न हुए) । इसी कारण है गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक समान आयुवाले और एक साथ उत्पन्न होने वाले नहीं हैं ।
भगवन् ! क्या सब असुरकुमार समान आहारवाले और समान शरीरवाले हैं ? (इत्यादि) गौतम ! असुरकुमारों के सम्बन्ध में सब वर्णन नैरयिकों के समान कहना चाहिए । विशेषता यह है कि असुरकुमारों के कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों से विपरीत कहना चाहिए; अर्थात्पूर्वोपपन्नक असुरकुमार महाकर्म वाले, अविशुद्धि वर्ण वाले और अशुद्ध लेश्या वाले हैं, जबकि पश्चादुपपन्नक प्रशस्त हैं । शेष सब पहले के समान जानना चाहिए । इसी प्रकार (नागकुमारों से लेकर) यावत् स्तनितकुमारों (तक) समझना चाहिए । पृथ्वीकायिक जीवों का आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों के समान समझना चाहिए ।
भगवन् ! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले हैं ? हाँ गौतम ! वे समान वेदनावाले हैं । भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं ? हे गौतम ! समस्त पृथ्वीकायिक जीव असंज्ञी हैं और असंज्ञीभूत जीव वेदना को अनिर्धारित रूप से वेदते हैं । इस कारण, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले हैं ।
भगवन् ! क्या सभी पृथ्वीकायिक जीव समान क्रियावाले हैं ? हाँ, गौतम ! वे सभी समान क्रियावाले हैं । भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! सभी पृथ्वीकायिक जीव मायी और मिथ्याद्दष्टि हैं । इसलिए उन्हें नियम से पांचों क्रियाएँ लगती हैं । वे पांच क्रियाएँ ये हैं-आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया । इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी पृथ्वीकायिक जीव समानक्रिया वाले हैं ।
जैसे नारक जीवों में समायुष्क और समोपपन्नक आदि चार भंग कहे गए हैं, वैसे ही पृथ्वीकायिक जीवों में भी कहने चाहिए । जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के आहारादि के