________________
२६
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
उदीर्ण (कर्म) को भोगते हैं, अनुदीर्ण को नहीं भोगते इस कारण ऐसा कहा गया है कि किसी कर्म को भोगते हैं, किसी को नहीं भोगते । इसी प्रकार यावत् नैरयिक से लेकर वैमानिक तक चौबीस दण्डकों सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर समझ लेना चाहिए ।
भगवन् ! क्या जीव स्वयंकृत आयु को भोगता है ? हे गौतम! किसी को भोगता है, किसी को नहीं भोगता । जैसे दुःख-कर्म के विषय में दो दण्डक कहे गए हैं, उसी प्रकार आयुष्य (कर्म) के सम्बन्ध में भी एकवचन और बहुवचन वाले दो दण्डक कहने चाहिए । एकवचन से यावत् वैमानिकों तक कहना, बहुवचन से भी (वैमानिकों तक ) कहना ।
[२७] भगवन् ! क्या सभी नारक समान आहार वाले, समान शरीर वाले, तथा समान उच्छ्वास- निःश्वास वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं; जैसे कि - महाशरीरी और अल्पशरीरी । इनमें जो बड़े शरीर वाले हैं, वे बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत पुद्गलों का परिणमन करते हैं, बहुत पुद्गलों को उच्छ्वास रूप में ग्रहण करते हैं औ बहुत पुद्गलों को निःश्वासरूप से छोड़ते हैं तथा वे बार-बार आहार लेते हैं, बार-बार उसे परिणमाते हैं, तथा बारबार उच्छ्वास- निःश्वास लेते हैं । तथा जो छोटेशरीर वाले नारक हैं, वे थोड़े पुद्गलों का आहार करते हैं, थोड़े-से पुद्गलों का परिणमन करते हैं, और थोड़े पुद्गलों को उच्छ्वास रूप से ग्रहण करते हैं, तथा थोड़े-से पुद्गलों को निःश्वास- रूप से छोड़ते हैं । वे कदाचित् आहार करते हैं, कदाचित् उसे परिणमाते है और कदाचित् उच्छ्वास तथा निःश्वास लेते हैं । हे गौतम । इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक जीव समान आहारवाले, शरीरवाले और समान उच्छ्वास - निःश्वासवाले नहीं हैं ।
1
1
समान
भगवन् ! क्या सभी नारक समान कर्मवाले
? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नारकी जीव दो प्रकार के कहे गए हैं; वह इस प्रकार है - पहले उत्पन्न हुए और पीछे उत्पन्न हुए । इनमें से जो पूर्वोपपन्नक हैं वे अल्पकर्म वाले हैं और जो उनमें पश्चादुपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं, इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक समान कर्मवाले नहीं हैं ।
भगवन् ! क्या सभी नारक समवर्ण वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! पूर्वोक्त कथनवत् नारक दो प्रकार के हैं - पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक । इनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे विशुद्ध वर्ण वाले हैं, जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे अविशुद्ध वर्णवाले हैं, इसीलिए हे गौतम! ऐसा कहा जाता है ।
भगवन् ! क्या सब नैरयिक समानलेश्या वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! किस कारण से कहा जाता है कि सभी नैरयिक समान लेश्या वाले नहीं हैं ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक । इनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे विशुद्ध लेश्यावाले और जो इनमें पश्चादुपपन्नक हैं, वे अविशुद्ध लेश्या वाले हैं, इस कारण हे गौतम! कहा जाता है कि सभी नारक समानलेश्या वाले नहीं हैं ।
भगवन् ! क्या सब नारक समान वेदना वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-संज्ञिभूत और असंज्ञिभूत । इनमें जो संज्ञिभूत हैं, वे महावेदना वाले हैं और जो इनमें