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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
जम्बूद्वीप में दो सूर्य क्या अतीत क्षेत्र को उद्योतित करते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! इस विषय में पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिए; यावत् नियमतः छह दिशाओं को उद्योतित करते हैं । इसी प्रकार तपाते हैं; यावत् छह दिशा को नियमतः प्रकाशित करते हैं ।
भगवन् ! जम्बूद्वीप में सूर्यों की क्रिया क्या अतीत क्षेत्र में की जाती है ? वर्तमान क्षेत्र में ही की जाती है अथवा अनागत क्षेत्र में की जाती है ? गौतम ! अतीत और अनागत क्षेत्र में क्रिया नहीं की जाती, वर्तमान क्षेत्र में क्रिया की जाती है । भगवन् ! वे सूर्य पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट ? गौतम ! वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं, अस्पृष्ट क्रिया नहीं करते; यावत् नियमतः छहों दिशाओं में स्पृष्ट क्रिया करते हैं ।
भगवन् ! जम्बूद्वीप में सूर्य कितने ऊँचे क्षेत्र को तपाते हैं, कितने नीचे क्षेत्र को तपाते हैं और कितने तिरछे क्षेत्र को तपाते हैं ? गौतम ! वे सौ योजन ऊँचे क्षेत्र को तप्त करते हैं, अठारह सौ योजन नीचे के क्षेत्र को तप्त करते हैं, और सैंतालीस हजार दो सौ तिरसठ योजन तथा एक योजन के साठ भागों में से इक्कीस भाग तिरछे क्षेत्र को ताप्त करते हैं । भगवन् ! मानुषोत्तरपर्वत के अन्दर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप देव हैं, वे क्या ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! जीवाभिगमसूत्र अनुसार कहना । इन्द्रस्थान कितने काल तक उपपात विरहित कहा गया है ? तक कहना चाहिये । गौतम ! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः छह मास । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक- ८ उद्देशक- ९
[४२२ ] भगवन् ! बंध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! बंध दो प्रकार का कहा गया है, प्रयोगबंध और विस्त्रसाबंध |
[४२३] भगवन् ! विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है । यथा - सादिक विस्त्रसाबंध और अनादिक विस्त्रसाबंध |
भगवन् ! अनादिक- विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकारका - धर्मास्तिकायका अन्योन्य- अनादिक-विस्त्रसाबंध, अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य- अनादिकविस्त्रसाबंध और आकाशास्तिकाय का अन्योन्य- अनादिक- विस्त्रसाबंध । भगवन् ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य- अनादिक- विस्त्रसाबंध क्या देशबंध है या सर्वबंध है ? गौतम ! वह देशबंध है, सर्वबंध नहीं । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय के अन्योन्य- अनादिक विस्त्रसाबंद के विषय में समझना । भगवन् ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य- अनादिक विस्त्रसाबंध कितने का तक रहता है ? गौतम ! सर्वकाल रहता है । अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय का अन्योन्य- अनादिक-विस्त्रसाबंध भी सर्वकाल रहता है ।
भगवन् ! सादिक - विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! वह तीन प्रकार का कहा गया है । जैसे- बन्धनप्रत्यनीक, भाजनप्रत्ययिक और परिणामप्रत्ययिक ।
भगवन् ! बंधन-प्रत्ययिक - सादि - विस्त्रसाबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! परमाणु, द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक, यावत् दशप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक पुद्गल - स्कन्धों का विमात्रा में स्निग्धता से, विमात्रा में रूक्षता से तथा विमात्रा में स्निग्धता - रूक्षता से बंधन - प्रत्ययिक बंध समुत्पन्न होता है । वह जघन्यतः एक समय और