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________________ भगवती-८/-/९/४२३ २२७ उत्कृष्टतः असंख्येय काल तक रहता है । भगवन् ! भाजनप्रत्ययिक-सादि - विस्त्रसाबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! पुरानी सुरा, पुराने गुड़, और पुराने चावलों का भाजन- प्रत्ययिक-आदिविस्त्रसाबंध समुत्पन्न होता है । वह जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः संख्यात काल तक रहता है । भगवन् ! परिणामप्रत्ययिक - सादि - विस्त्रसाबंध किसे कहते है ? गौतम (तृतीय शतक) में जो बादलों का अभ्रवृक्षों का यावत् अमोघों आदि के नाम कहे गए हैं, उन सबका परिणामप्रत्ययिकबंध समुत्पन्न होता है । वह बन्ध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः छह मास तक रहता है । [४२४] भगवन् ! प्रयोगबंध किस प्रकार का है ? गौतम ! प्रयोगबंध तीन प्रकार का कहा गया है । वह इस प्रकार - अनादिअपर्यवसित, सादि - अपर्यवसित अथवा सादि - सपर्यवसित । इनमें से जो अनादि- अपर्यवसित है, वह जीव के आठ मध्यप्रदेशों का होता है । उन आठ प्रदेशों में भी तीन-तीन प्रदेशों का जो बंध होता है, वह अनादि - अपर्यवसित बंध है । शेष सभी प्रदेशों का सादि बंध है । इन तीनों में से जो सादि - अपर्यवसित बंध है, वह सिद्धों का होता है तथा इनमें से जो सादि - सपर्यवसित बंध है, वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा आलापनबंध, अल्लिकापन बंध, शरीरबंध और शरीरप्रयोगबंध । भगवन् ! आलापनबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! तृण के भार, काष्ठ के भार, पत्तों के भार, पलाल के भार और बेल के भार, इन भारों को बेंत की लता, छाल, वरत्रा, रज्जु, बेल, कुश और डाभ आदि से बांधने से आलापनबंध समुत्पन्न होता है । यह बंध जघन्यतः अन्तमुहूर्त तक और उत्कृष्टः संख्येय काल तक रहता है । भगवन् ! ( आलीन) बंध किसे कहते हैं ? गौतम ! आलीनबंध चार प्रकार का है, -श्लेषणाबंध, उच्चयबंध, समुच्चयबंध और संहननबंध । भगवन् ! श्लेषणाबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! जो भित्तियों का, आंगन के फर्श का, स्तम्भों का, प्रासादों का, काष्ठों का, चर्मों का, घड़ों का, वस्त्रों का और चटाइयों का चूना, कीचड़ श्लेष लाख, मोम आदि श्लेषण द्रव्यों से बंध सम्पन्न होता है, वह श्लेषणाबंध है । यह बंध जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल रहता है । भगवन् ! उच्चयबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! तृणराशिक, काष्ठराशि, पत्रराशि, तुषराशि, भूसे का ढेर, गोबर का ढेर अथवा कूड़े-कचरे का ढेर, इन का ऊँचे ढेर रूप से जो बंध सम्पन्न होता है, उसे उच्चयबंध कहते हैं । यह बंध जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः संख्यातकाल तक रहता है । भगवन् ! समुच्चयबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! कुआ, तालाब, नदी, ग्रह, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सरोवर, सरोवरों की पंक्ति, बड़े सरोवरों की पंक्ति, बिलों की पंक्ति, देवकुल, सभा, प्रपा स्तूप, खाई, परिखा, प्राकार अट्टालक, चरक, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद, घर, शरणस्थान, लयन, आपण, श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वरमार्ग, चतुर्मुख मार्ग और राजमार्ग आदि का चूना, मिट्टी, कीचड़ एवं श्लेष के द्वारा समुच्चयरूप से जो बंध होता है, उसे समुच्चयबंध कहते हैं । उसकी स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट संख्येयकाल की है । भगवन् ! संहननबंध किसे कहते हैं ? गौतम संहननबंध दो प्रकार का है, - देशसंहननबंध और सर्व संहननबंध । भगवन् ! देशसंहननबंध किसे कहते हैं ? गौतम ! शकट, रथ, यान, युग्य वाहन, गिल्लि, थिल्लि, शिबिका, स्यन्दमानी, लोढ़ी, लोहे की कड़ाही, कुड़छी, आसन,
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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