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________________ भगवती-७/-/९/३७४ १८५ का पूर्वसंगतिक था और असुरेन्द्र असुरकुमार राजा चमर कूणिक राजा का पर्यायसंगतिक मित्र था । इसीलिए, हे गौतम ! उन्होने कूणिक राजा को सहायता दी । [३७५] भगवन् ! बहुत-से लोग परस्पर ऐसा कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं किअनेक प्रकार के छोटे-बड़े संग्रामों में से किसी भी संग्राम में सामना करते हुए आहत हुए एवं घायल हुए बहुत-से मनुष्य मृत्यु के समय मर कर किसी भी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम बहुत-से मनुष्य, जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि संग्राम में मारे गए मनुष्य देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहने वाले मिथ्या कहते हैं । हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा कहता हूँगौतम ! उस काल और उस समय में वैशाली नाम की नगरी थी । उस वैशाली नगरी में 'वरुण' नामक नागनतृक रहता था । वह धनाढ्य यावत् अपरिभूत व्यक्ति था । वह श्रमणोपासक था और जीवाजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता था, यावत वह आहारादि द्वारा श्रमणनिर्ग्रन्थों को प्रतिलाभित करता हुआ तथा निरन्तर छठ-छठ की तपस्या द्वारा अपनी आत्मा को भाविक करता हुआ विचरण करता था । ___ एक बार राजा के अभियोग से, गण के अभियोग से तथा बल के अभियोग से वरुण नागनतृक को रथमूसलसंग्राम में जाने की आज्ञा दी गई । तब उसने षष्ठभक्त को बढ़ाकर अष्टभक्त तप कर लिया । तेले की तपस्या करके उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा-“हे देवानुप्रियो ! चार घंटों वाला अश्वरथ, सामग्रीयुक्त तैयार करके शीघ्र उपस्थित करो । साथ ही अश्व, हाथी, रथ और प्रवर योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित करो, यावत् यह सब सुसज्जित करके मेरी आज्ञा मुझे वापस सौंपो । तदनन्तर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसकी आज्ञा स्वीकार एवं शिरोधार्य करके यथाशीघ्र छत्रसहित एवं ध्वजासहित चार घंटाओं वाला अश्वरथ, यावत् तैयार करके उपस्थित किया । साथ ही घोड़े, हाथी, रथ एवं प्रवर योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को यावत् सुसज्जित किया और सुसज्जित करके यावत् वरुण नागनप्तृक को उसकी आज्ञा वापिस सौंपी । तत्पश्चात् वह वरुण नागनतृतक, जहाँ स्नानगृह था, वहाँ आया । यावत् कौतुक और मंगलरूप प्रायश्चित्त किया, सर्व अलंकारों से विभूषित हुआ, कवच पहना, कोरंटपुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र धारण किया, इत्यादि कूणिक राजा की तरह कहना चाहिए । फिर अनेक गणनायकों, दूतों और सन्धिपालों के साथ परिवृत होकर वह स्नानगृह से बाहर निकल कर बाहर की उपस्थानशाला में आया और सुसज्जित चातुर्घण्ट अश्वरथ पर आरूढ हो कर अश्व, गज, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना के साथ, यावत् महान् सुभटों के समूह से परिवृत होकर जहाँ स्थमूसल-संग्राम होने वाला था, वहाँ आया । रथमूसल-संग्राम में उतरा । उस समय स्थमूसल-संग्राम में प्रवृत्त होने के साथ ही वरुण नागनप्तक ने इस प्रकार का अभिग्रह किया मेरे लिए यही कल्प है कि रथमूसल संग्राम में युद्ध करते हुए जो मुझ पर पहले प्रहार करेगा, उसे ही मुझे मारना है, (अन्य) व्यक्तियों को नहीं । यह अभिग्रह करके वह रथमूसलसंग्राम में प्रवृत्त हो गया । उसी समय रथमूसल-संग्राम में जूझते हुए वरुण नाग-नतृक के रथ के सामने प्रतिरथी के रूप में एक पुरुष शीघ्र ही आया, जो उसी के सदृश, उसी के समान त्वचा वाला था,
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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