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________________ १८४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद गया । तत्पश्चात् उस कूणिक राजा ने महाशिलाकण्टक संग्राम करते हुए नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी; जो काशी और कोशल देश के अठारह गणराजा थे, उनके प्रवरवीर योद्धाओं को नष्ट किया, घायल किया और मार डाला । उनकी चिह्नांकित ध्वजा-पताकाएँ गिरा दी । उन वीरों के प्राण संकट में पड़ गए, अतः उन्हें युद्धस्थल से दसों दिशाओं में भगा दिया । भगवन् ! इस ‘महाशिलाकण्टक' संग्राम को महाशिलाकण्टक संग्राम क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम हो रहा था, तब उस संग्राम में जो भी घोड़ा, हाथी, योद्धा या सारथि आदि तृण से, काष्ठं से, पत्ते से या कंकर आदि से आहत होते, वे सब ऐसा अनुभव करते थे कि हम महाशिला (के प्रहार) से मारे गए हैं । हे गौतम ! इस कारण इस संग्राम को महाशिलाकण्टक संग्राम कहा जाता है | भगवन ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम हो रहा था, तब उसमें कितने लाख मनुष्य मारे गए ? गौतम ! महाशिलाकण्टक-संग्राम में चौरासी लाख मनुष्य मारे गए । भगवन् ! शीलरहित यावत् प्रत्याख्यान एवं पौषधोपवास से रहित, रोष में भरे हुए, परिकुपित, युद्ध में घायल हुए और अनुपशान्त वे मनुष्य मर कर कहाँ गए, कहाँ उत्पन्न हुए ? गौतम ! प्रायः नरक और तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हुए हैं । [३७३] भगवन् ! अर्हन्त भगवान् ने जाना है, इसे प्रत्यक्ष किया है और विशेषरूप से जाना है कि यह रथमूसलसंग्राम है । भगवन् ! यह रथमूसलसंग्राम जब हो रहा था तब कौन जीता, कौन हारा ? हे गौतम वज्री-इन्द्र और विदेहपुत्र (कूणिक) एवं असुरेन्द्र असुरराज चमर जीते और नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी राजा हार गए तदनन्तर रथमूसल-संग्राम उपस्थित हुआ जान कर कूणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया । इसके बाद का सारा वर्णन महाशिलाकण्टक की तरह कहना । इतना विशेष है कि यहाँ 'भूतानन्द' नामक हस्तिराज है । यावत् वह कूणिक राजा रथमूलसंग्राम में उतरा । उसके आगे देवेन्द्र देवराज शक्र है, यावत् पूर्ववत् सारा वर्णन कहना । उसके पीछे असुरेन्द्र असुरराज चमर लोह के बने हुए एक महान् किठिन जैसे कवच की विकुर्वणा करके खड़ा है । इस प्रकार तीन इन्द्र संग्राम करने के लिए प्रवृत्त हुए हैं । यथा देवेन्द्र, मनुजेन्द्र और असुरेन्द्र । अब कूणिक केवल एक हाथी से सारी शत्रु-सेना को पराजित करने में समर्थ है । यावत् पहले कहे अनुसार उसने शत्रु राजाओं को दसों दिशाओं में भगा दिया । भगवन् ! इस 'रथमूलसंग्राम' को रथमूलसंग्राम क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जिस समय स्थमूलसंग्राम हो रहा था, उस समय अश्वरहित, सारथिरहित और योद्धाओं से रहित केवल एक रथमूसल सहित अत्यन्त जनसंहार, जनवध, जन-प्रमर्दन और जनप्रलय के समान रक्त का कीचड़ करता हुआ चारों ओर दौड़ता था । इसी कारण उस संग्राम को 'रथमूलसंग्राम' यावत् कहा गया है । भगवन् ! जब रथमूसलसंग्राम हो रहा था, तब उसमें कितने लाख मनुष्य मारे गए ? गौतम ! रथमूसलसंग्राम में छियानवै लाख मनुष्य मारे गए । भगवन् ! निःशील यावत् वे मनुष्य मृत्यु के समय मरकर कहाँ गए, कहाँ उत्पन्न हुए ? गौतम ! उनमें से दस हजार मनुष्य तो एक मछली के उदर में उत्पन्न हुए, एक मनुष्य देवलोक में उत्पन्न हुआ, एक मनुष्य उत्तम कुल में उत्पन्न हुआ और शेष प्रायः नरक और तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हुए । [३७४] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र और असुरेन्द्र असुरराज चमर, इन दोनों ने कूणिक राजा को किस कारण से सहायता दी ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र तो कूणिक राजा
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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