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भगवती-७/-/९/३७१
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उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए । किन्तु इतना विशेष है कि यहाँ रहा हुआ मुनि यहाँ रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है । शेष सारा वर्णन पूर्ववत् यावत् 'भगवन् ! क्या रूक्ष पुद्गलों को स्निग्ध पुद्गलों के रूप में परिणित करने में समर्थ है ?' [उ.] हाँ, गौतम ! समर्थ है । [प्र.] भगवन् ! क्या वह यहाँ रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके यावत् अन्यत्र रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण किए बिना विकुर्वणा करता है ?' तक कहना ।
[३७२] अर्हन्त भगवान् ने यह जाना है, अर्हन्त भगवान् ने यह सुना है- तथा अर्हन्त भगवान् को यह विशेष रूप से ज्ञात है कि महाशिलाकण्टक संग्राम महाशिलाकण्टक संग्राम ही है । (अतः) भगवन ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम चल रहा था, तब उसमें कौन जीता
और कौन हारा ? गौतम ! वजी विदेहपुत्र कूणिक राजा जीते, नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी, जो कि काश और कौशलदेश के १८ गणराजा थे, वे पराजित हुए ।
उस समय में महाशिलाकण्टक-संग्राम उपस्थित हुआ जान कर कूणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया । उनसे कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही ‘उदायी' नामक हिस्तराज को तैयार करो और अश्व, हाथी, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना सन्नद्ध करो और ये सब करके यावत् शीघ्र ही मेरी आज्ञा मुझे वापिस सौंपो ।
तत्पश्चात् कूणिक राजा द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर वे कौटुम्बिक पुरुष हृष्ट-तुष्ट हुए, यावत् मस्तक पर अंजलि करके हे स्वामिन ! 'ऐसा ही होगा, जैसी आज्ञा'; यों कह कर उन्होंने विनयपूर्वक वचन स्वीकार किया । निपुण आचार्यों के उपदेश से प्रशिक्षित एवं तीक्ष्ण बुद्धि-कल्पना के सुनिपुण विकल्पों से युक्त तथा औपपातिकसूत्र में कहे गए विशेषणों से युक्त यावत् भीम संग्राम के योग्य उदार उदायी नामक हस्तीराज को सुसज्जित किया । साथ ही घोड़े, हाथी, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना भी सुसज्जित की । जहाँ कूणिक राजा था, वहाँ उसके पास आए और करबद्ध होकर उन्होंने कूणिक राजा को आज्ञा वापिस सौंपी । तत्पश्चात् कूणिक राजा जहाँ स्नानगह था, वहाँ आया, उसने स्नानगृह में प्रवेश किया । फिर स्नान किया, स्नान से सम्बन्धित मर्दनादि बलिकर्म किया, फिर प्रायश्चित्तरूप कौतुक तथा मंगल किये । समस्त आभूषणों से विभूषित हुआ । सन्नद्धबद्ध हुआ, लोहकवच को धारण किया, फिर मुड़े हुए धनुर्दण्ड को ग्रहण किया । गले के आभूषण पहने और योद्धा के योग्य उत्तमोत्तम चिह्नपट बांधे । फिर आयुध तथा प्रहरण ग्रहण किये । फिर कोरण्टक पुष्पों की माला सहित छत्र धारण किया तथा उसके चारों ओर चार चामर ढुलाये जाने लगे । लोगों द्वारा मांगलिक एवं जय-विजय शब्द उच्चारण किये जाने लगे ।
इस प्रकार कूणिक राजा उववाइय में कहे अनुसार यावत् उदायी नामक प्रधान हाथी पर आरूढ हुआ । इसके बाद हारों से आच्छादित वक्षःस्थल वाला कूणिक जनमन में रतिप्रीति उत्पन्न करता हुआ यावत् श्वेत चामरों से बार-बार बिंजाता हुआ, अश्व, हस्ती, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना से संपरिवृत, महान् सुभटों के विशाल समूह से व्याप्त कूणिक राजा जहाँ महाशिलाकण्टक संग्राम था, वहाँ आया । वह महाशिलाकण्टक संग्राम में उतरा । उसके आगे देवराज देवेन्द्र शक्र वज्रप्रतिरूपक अभेद्य एक महान् कवच की विकुर्वणा करके खड़ा हुआ । इस प्रकार दो इन्द्र संग्राम करने लगे; जैसे कि-एक देवेन्द्र और दूसरा मनुजेन्द्र (कूणिक राजा), कूणिक राजा केवल एक हाथी से भी पराजित करने में समर्थ हो