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________________ १५४ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद गौतम ! जीव और वैमानिक देव प्रत्याख्यान से निर्वर्तित आयुष्य वाले हैं, अप्रत्याख्यान से निर्वर्तित आयुष्य वाले भी हैं, और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान से निर्वर्तित आयुष्य वाले भी हैं । शेष सभी जीव अप्रत्याख्यान से निर्वर्तित आयुष्य वाले हैं । [२८९] प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान का जानना, करना, तीनों का ( जानना, करना), तथा आयुष्य की निर्वृति, इस प्रकार ये चार दण्डक सप्रदेश उद्देशक में कहे गए हैं । [२९०] भगवन् ! यह इसी प्रकार है । यह इसी प्रकार है । शतक-६ उद्देशक- ५ [२९१] भगवन् ! ‘तमस्काय' किसे कहा जाता है ? क्या 'तमस्काय' पृथ्वी को कहते हैं या पानी को ? गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी 'तमस्काय' कहलाता है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश को प्रकाशित नहीं करता । इस कारण से पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, पानी ही तमस्काय कहलाता है । भगवन् ! तमस्काय कहाँ से उत्पन्न होता है और कहाँ जाकर स्थित होता है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के बाहर तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्रों को लांघने के बाद अरुणवरद्वीप की बाहरी वेदिका के अन्त से अरुणोदयसमुद्र में ४२,००० योजन अवगाहन करने (जाने) पर वहां के ऊपरी जलान्त से एक प्रदेश वाली श्रेणी आती है, यहीं से तमस्काय प्रादुर्भूत हुआ है । वहाँ से १७२१ योजन ऊंचा जाने के बाद तिरछा विस्तृत से विस्तृत होता हुआ, सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार और माहेन्द्र, इन चार देवलोकों को आवृत करके उनसे भी ऊपर पंचम कल्प के रिष्टविमान प्रस्तट तक पहुंचा है और यहीं संस्थित हुआ है । भगवन् ! तमस्काय का संस्थान (आकार) किस प्रकार का है ? गौतम ! तमस्काय नीचे तो मल्लक के मूल के आकार का है और ऊपर कुक्कुटपंजरक आकार का है । भगवन् ! तमस्काय का विष्कम्भ और परिक्षेप कितना कहा गया है ? गौतम ! तमस्काय दो प्रकार का कहा गया है- एक तो संख्येयविस्तृत और दसरा असंख्येयविस्तृत । इनमें से जो संख्येयविस्तृत है, उसका विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन है । जो तमस्काय असंख्येयविस्तृत है, उसका विष्कम्भ असंख्येय हजार योजन है और परिक्षेप भी असंख्येय हजार योजन है । भगवन् ! तमस्काय कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! समस्त द्वीप - समुद्रों के सर्वाभ्यन्तर यह जम्बूद्वीप है, यावत् यह एक लाख योजन का लम्बा-चौड़ा है । इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है । कोई महाऋद्धि यावत् महानुभाव वाला देव - 'यह चला, यह चला'; यों करके तीन चुटकी बजाए, उतने समय में सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा करके शीघ्र वापस आ जाए, इस प्रकार की उत्कृष्ट और त्वरायुक्त यावत् देव की गति से चलता हुआ देव यावत् एक दिन, दो दिन, तीन दिन चले, यावत् उत्कृष्ट छह महीने तक चले तब जाकर कुछ तमस्काय को उल्लंघन कर पाता है, और कुछ तमस्काय को उल्लंघन नहीं कर पाता । हे गौतम ! तमस्काय इतना बड़ा है । भगवन् ! तमस्काय गृह हैं, अथवा गृहापण
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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