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भगवती-६/-/५/२९१
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हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! तमस्काय में ग्राम हैं यावत् अथवा सन्निवेश हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
भगवन् ! क्या तमस्काय में उदार मेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मूर्च्छित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा है । भगवन् ! क्या उसे देव करता है, असुर करता है या नाग करता है ? गौतम ! देव भी, असुर भी, और नाग भी करता है ।
भगवन! तमस्काय में क्या बादर स्तनित शब्द है, क्या बादर विद्युत् है ? हाँ, गौतम! है । भगवन् ! क्या उसे देव, असुर, या नाग करता है ? गौतम ! तीनों ही करते हैं ।
भगवन् ! क्या तमस्काय में बादर पृथ्वीकाय है और बादर अग्निकाय है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । वह निषेध विग्रहगतिसमापन्न के सिवाय समझना । भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वे (चन्द्रादि) तमस्काय के आसपास हैं । भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा की आभा या सूर्य की आभा है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; किन्तु तमस्काय में (जो प्रभा है, वह) अपनी आत्मा को दूषित करने वाली है ।
भगवन् ! तमस्काय वर्ण से कैसा है ? गौतम ! तमस्काय वर्ण से काला, काली कान्ति वाला, गम्भीर, रोमहर्षक, भीम, उत्त्रासजनक और परमकृष्ण कहा गया है । कोई देव भी उस तमस्काय को देखते ही सर्वप्रथम क्षुब्ध हो जाता है । कदाचित् कोई देव तमस्काय में (प्रवेश) करे तो प्रवेश करने के पश्चात् वह शीघ्रातिशीघ्र त्वरित गति से झटपट उसे पार कर जाता है ।
भगवन् ! तमस्काय के कितने नाम कहे गए हैं ? गौतम ! तमस्काय के तेरह नाम कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं-तम, तमस्काय, अन्धकार, महान्धकार, लोकान्धकार, लोकतमिस्त्र, देवान्धकार, देवतमिस्त्र, देवारण्य, देवव्यूह, देवपरिघ, देवप्रतिक्षोभ और अरुणोदकससुद्र ।
भगवन् ! क्या तमस्काय पृथ्वी का परिणाम है, जल का परिणाम है, जीव का परिणाम है अथवा पुद्गल का परिणाम है ? गौतम ! तमस्काय पृथ्वी का परिणाम नहीं है, किन्तु जल का परिणाम है, जीव का परिणाम भी है और पुद्गल का परिणाम भी है । भगवन् ! क्या तमस्काय में सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व पृथ्वीकायिक रूप में यावत् त्रसकायिक रूप में पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? हाँ, गौतम ! अनेकबार अथवा अनन्तबार पहले उत्पन्न हो चुके हैं, किन्तु बादर पृथ्वीकायिक रूप में या बादर अग्निकायिक रूप में उत्पन्न नहीं हुए हैं ।
[२९२] भगवन् ! कृष्णराजियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! आठ | भगवन् ! ये आठ कृष्णराजियाँ कहाँ हैं ? गौतम ! ऊपर सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों से ऊपर और ब्रह्मलोक देवलोक के अरिष्ट नामक विमान के (तृतीय) प्रस्तट से नीचे, अखाड़ा के आकार की समचतुरस्त्र संस्थानवाली आठ कृष्णराजियाँ हैं । यथा-पूर्व में दो, पश्चिम में दो, दक्षिण में दो और उत्तर में दो । पूर्वाभ्यन्तर कृष्णराजि दक्षिणदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श की हुई है । दक्षिणदिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने पश्चिमदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया हुआ है । पश्चिमदिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने उत्तरदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया हुआ है और उत्तरदिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि पूर्वदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श की हुई है । पूर्व और पश्चिम दिशा की दो बाह्य कृष्णराजियां षट्कोण हैं, उत्तर और दक्षिण की दो बाह्यकृष्णराजियाँ त्रिकोण हैं, पूर्व और पश्चिम की तथा उत्तर और दक्षिण की