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________________ भगवती-६/-/५/२९१ १५५ हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! तमस्काय में ग्राम हैं यावत् अथवा सन्निवेश हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या तमस्काय में उदार मेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मूर्च्छित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा है । भगवन् ! क्या उसे देव करता है, असुर करता है या नाग करता है ? गौतम ! देव भी, असुर भी, और नाग भी करता है । भगवन! तमस्काय में क्या बादर स्तनित शब्द है, क्या बादर विद्युत् है ? हाँ, गौतम! है । भगवन् ! क्या उसे देव, असुर, या नाग करता है ? गौतम ! तीनों ही करते हैं । भगवन् ! क्या तमस्काय में बादर पृथ्वीकाय है और बादर अग्निकाय है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । वह निषेध विग्रहगतिसमापन्न के सिवाय समझना । भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वे (चन्द्रादि) तमस्काय के आसपास हैं । भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा की आभा या सूर्य की आभा है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; किन्तु तमस्काय में (जो प्रभा है, वह) अपनी आत्मा को दूषित करने वाली है । भगवन् ! तमस्काय वर्ण से कैसा है ? गौतम ! तमस्काय वर्ण से काला, काली कान्ति वाला, गम्भीर, रोमहर्षक, भीम, उत्त्रासजनक और परमकृष्ण कहा गया है । कोई देव भी उस तमस्काय को देखते ही सर्वप्रथम क्षुब्ध हो जाता है । कदाचित् कोई देव तमस्काय में (प्रवेश) करे तो प्रवेश करने के पश्चात् वह शीघ्रातिशीघ्र त्वरित गति से झटपट उसे पार कर जाता है । भगवन् ! तमस्काय के कितने नाम कहे गए हैं ? गौतम ! तमस्काय के तेरह नाम कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं-तम, तमस्काय, अन्धकार, महान्धकार, लोकान्धकार, लोकतमिस्त्र, देवान्धकार, देवतमिस्त्र, देवारण्य, देवव्यूह, देवपरिघ, देवप्रतिक्षोभ और अरुणोदकससुद्र । भगवन् ! क्या तमस्काय पृथ्वी का परिणाम है, जल का परिणाम है, जीव का परिणाम है अथवा पुद्गल का परिणाम है ? गौतम ! तमस्काय पृथ्वी का परिणाम नहीं है, किन्तु जल का परिणाम है, जीव का परिणाम भी है और पुद्गल का परिणाम भी है । भगवन् ! क्या तमस्काय में सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व पृथ्वीकायिक रूप में यावत् त्रसकायिक रूप में पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? हाँ, गौतम ! अनेकबार अथवा अनन्तबार पहले उत्पन्न हो चुके हैं, किन्तु बादर पृथ्वीकायिक रूप में या बादर अग्निकायिक रूप में उत्पन्न नहीं हुए हैं । [२९२] भगवन् ! कृष्णराजियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! आठ | भगवन् ! ये आठ कृष्णराजियाँ कहाँ हैं ? गौतम ! ऊपर सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों से ऊपर और ब्रह्मलोक देवलोक के अरिष्ट नामक विमान के (तृतीय) प्रस्तट से नीचे, अखाड़ा के आकार की समचतुरस्त्र संस्थानवाली आठ कृष्णराजियाँ हैं । यथा-पूर्व में दो, पश्चिम में दो, दक्षिण में दो और उत्तर में दो । पूर्वाभ्यन्तर कृष्णराजि दक्षिणदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श की हुई है । दक्षिणदिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने पश्चिमदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया हुआ है । पश्चिमदिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने उत्तरदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया हुआ है और उत्तरदिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि पूर्वदिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श की हुई है । पूर्व और पश्चिम दिशा की दो बाह्य कृष्णराजियां षट्कोण हैं, उत्तर और दक्षिण की दो बाह्यकृष्णराजियाँ त्रिकोण हैं, पूर्व और पश्चिम की तथा उत्तर और दक्षिण की
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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