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________________ भगवती-६/-/४/२८६ १५३ करना चाहिए । मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए । विशेषता यह है कि जो काययोगी एकेन्द्रिय होते हैं, उनमें अभंगक होता है । अयोगी जीवों का कथन अलेश्यजीवों के समान कहना चाहिए । ____साकार-उपयोग वाले और अनाकार-उपयोग वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए । सवेदक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान करना चाहिए । स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए । विशेष यह है कि नपुंसकवेद में जो एकेन्द्रिय होते हैं, उनमें अभंगक है । जैसे अकषायी जीवों के विषय में कथन किया, वैसे ही अवेदक जीवों के विषय में कहना चाहिए । जैसे औधिक जीवों जीवों का कथन किया, वैसे ही सशरीरी जीवों के विषय में कहना चाहिए । औदारिक और वैक्रियशरीर वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए । आहारक शरीर वाले जीवों में जीव और मनुष्य में छह भंग कहने चाहिए । तैजस और कार्मण शरीर वाले जीवों का कथन औधिक जीवों के समान करना चाहिए । अशरीरी, जीव और सिद्धों के लिये तीन भंग कहने चाहिए । आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति और श्वासोच्छ्वास-पर्याप्ति वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए । भाषापर्याप्ति और मनःपर्याप्ति वाले जीवों का कथन संज्ञीजीवों के समान कहना । आहारअपर्याप्ति वाले जीवों का कथन अनाहारक जीवों के समान कहना । शरीर-अपर्याप्ति, इन्द्रिय-अपर्याप्ति और श्वासोच्छ्वास-अपर्याप्ति वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ तीन भंग कहने चाहिए । (अपर्याप्तक) नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए । भाषा-अपर्याप्ति और मनःअपर्याप्ति वाले जीवों में जीव आदि तीन भंग कहना । नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग जानना । [२८७] सप्रदेश, आहारक, भव्य, संज्ञी, लेश्या दृष्टि, संयत, कषाय, ज्ञान, योग, उपयोग, वेद, शरीर और पर्याप्ति, इन चौदह द्वारों का कथन ऊपर किया गया है । [२८८] भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं ? गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं । इसी तरह सभी जीवों के सम्बन्ध में प्रश्न है । गौतम ! नैरयिकजीव यावत् चतुरिन्द्रियजीव अप्रत्याख्यानी हैं, इन जीवों में शेष दो भंगों का निषेध करना । पंचेन्द्रियतिर्यञ्च प्रत्याख्यानी नहीं हैं, किन्तु अप्रत्याख्यानी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं । मनुष्य तीनों भंग के स्वामी हैं । शेष जीवों नैरयिकों समान जानना । भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यान को जानते हैं, अप्रत्याख्यान को जानते हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान को जानते हैं ? गौतम ! जो पञ्चेन्द्रिय जीव हैं, वे तीनों को जानते हैं । शेष जीव प्रत्याख्यान को नहीं जानते ।। ___भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यान करते हैं, अप्रत्याख्यान करते हैं, प्रत्याख्याना-प्रत्याख्यान करते हैं ? गौतम ! औधिक दण्डक के समान प्रत्याख्यान विषय में कहना । भगवन् ! क्या जीव, प्रत्याख्यान से निर्वर्तित आयुष्य वाले हैं, अप्रत्याख्यान से निर्वर्तित आयुष्य वाले हैं अथवा प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान से निर्वर्तित आयुष्य वाले हैं ?
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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