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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
नैरयिक जीवों के समान सिद्धपर्यन्त शेष सभी जीवों के लिए कहना चाहिए ।
जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर शेष सभी आहारक जीवों के लिए तीन भंग कहने चाहिए, यथा-(१) सभी सप्रदेश, (२) बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश, और (३) बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश । अनाहारक जीवों के लिए एकेन्द्रिय को छोड़कर छह भंग इस प्रकार कहने चाहिए, यथा-(१) सभी सप्रदेश, (२) सभी अप्रदेश, (३) एक सप्रदेश और एक अप्रदेश, (४) एक सप्रदेश और बहुत अप्रदेश, (५) बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश और (६) बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश । सिद्धों के लिए तीन भंग कहने चाहिए ।
भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक जीवों के लिए औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए । नौभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक जीव और सिद्धों में (पूर्ववत्) तीन भंग कहने चाहिए ।
संज्ञी जीवों में जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए । असंज्ञी जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए । नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए । नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए ।
सलेश्य जीवों का कथन, औधिक जीवों की तरह करना चाहिए । कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या वाले जीवों का कथन आहारक जीव की तरह करना चाहिए । किन्तु इतना विशेष है कि जिसके जो लेश्या हो, उसके वह लेश्या कहनी चाहिए । तेजोलेश्या में जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए; किन्तु इतनी विशेषता है कि पृथ्वीकायिक, अप्कायिक
और वनस्पतिकायिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए । पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए । अलेश्य जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए तथा अलेश्य मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए ।
सम्यग्दृष्टि जीवों में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए । विकलेन्द्रियों में छह भंग कहने चाहिए । मिथ्यादृष्टि जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में छह भंग कहने चाहिए ।
संयतों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए । असंयतों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए । संयतासंयत जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए । नोसंयतनोअसंयत-नोसंयतासंयत जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए।
सकषायी जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए । एकेन्द्रिय (सकषायी) में अभंगक कहना चाहिए । क्रोधकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए । मानकषायी और मायाकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए । नैरयिकों और देवों में छह भंग कहने चाहिए । लोभकषायी जीवों में जीव
और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए । नैरयिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए । अकषायी जीवों, जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए ।
औधिक ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान में जीवादि तीन भंग कहना । विकलेन्द्रियो में छह भंग कहना । अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान में जीवादि तीन भंग कहना । औधिक अज्ञान, मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहना । विभंगज्ञान में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए ।।
जिस प्रकार औधिक जीवों का कथन किया, उसी प्रकार सयोगी जीवों का कथन