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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
होते हैं, कोई अप्रदेश होते हैं और भावादेश से भी कोई सप्रदेश तथा कोई अप्रदेश होते हैं । जो पुद्गल क्षेत्रादेश से अप्रदेश होते हैं, उनमें कोई द्रव्यादेश से सप्रदेश और कोई अप्रदेश होते हैं, कालादेश और भावादेश से इसी प्रकार की भजना जाननी चाहिए । जिस प्रकार क्षेत्र से कहा, उसी प्रकार काल से और भाव से भी कहना चाहिए । जो पुद्गल द्रव्य से सप्रदेश होते हैं, वे क्षेत्र से कोई सप्रदेश और कोई अप्रदेश होते हैं; इसी प्रकार काल से और भाव से भी वे सप्रदेश और अप्रदेश समझ लेने चाहिए । जो पुद्गल क्षेत्र से सप्रदेश होते हैं; वे द्रव्य से नियमतः सप्रदेश होते हैं, किन्तु काल से तथा भाव से भजना से जानना चाहिए । जैसे द्रव्य से कहा, वैसे ही काल से और भाव से भी कथन करना ।
हे भगवन् ! (निर्ग्रन्थीपुत्र !) द्रव्यादेश से, क्षेत्रादेश से, कालादेश से और भावादेश से, सप्रदेश और अप्रदेश पुद्गलों में कौन किन से कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? हे नारदपुत्र ! भावादेश से अप्रदेश पुद्गल सबसे थोड़े हैं । उनकी अपेक्षा कालादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं; उनकी अपेक्षा द्रव्यादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं और उनकी अपेक्षा भी क्षेत्रादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं । उनसे क्षेत्रादेश से सप्रदेश पुद्गल असंख्यातगुणा हैं, उनसे द्रव्यादेशरो सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं, उनसे कालादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं और उनसे भी भावादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं । इसके पश्चात् नारदपुत्रअनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार को वन्दन नमस्कार किया । उनसे सम्यक् विनयपूर्वक-बार-बार उन्होंने क्षमायाचना की । क्षमायाचना करके वे संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे।
[२६३] 'भगवन् !' यों कह कर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! क्या जीव बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, किन्तु अवस्थित रहते हैं ।
- भगवन् ! क्या नैरयिक बढ़ते हैं, घटते हैं, अथवा अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं । जिस प्रकार नैरयिकों के विषय में कहा, इसी प्रकार वैमानिक-पर्यन्त कहना चाहिए ।
भगवन् ! सिद्धों के विषय में मेरी पृच्छा है (कि वे बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ?) गौतम ! सिद्ध बढ़ते हैं, घटते नहीं, वे अविस्थत भी रहते हैं ।
भगवन् ! जीव कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! सब काल में ।
भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक बढ़ते हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव जघन्यतः एक समय तक, और उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्यात भाग तक बढ़ते हैं । जिस प्रकार बढ़ने का काल कहा है, उसी प्रकार घटने का काल भी कहना चाहिए ।
भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! (नैरयिक जीव) . जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः चौबीस मुहूर्त तक (अवस्थित रहते हैं ।) इसी प्रकार सातों नरक-पृथ्वीयों के जीव बढ़ते हैं, घटते हैं, किन्तु अवस्थित रहने के काल में इस प्रकार भिन्नता है । यथा-रत्नप्रभापृथ्वी में ४८ मुहूर्त का, शर्कराप्रभापृथ्वी में चौवीस अहोरात्रि का, वालुकाप्रभापृथ्वी में एक मास का, पंकप्रभा में दो मास का, धूमप्रभा में चार मास का, तमःप्रभा में आठ मास का और तमस्तमःप्रभा में बारह मास का अवस्थान-काल है ।