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भगवती-५/-/८/२६३
जिस प्रकार नैरयिक जीवों की वृद्धि हानि के विषय में कहा है, उसी प्रकार असुरकुमार देवों की वृद्धि - हानि के सम्बन्ध में समझना चाहिए । असुरकुमार देव जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट ४८ मुहूर्त तक अवस्थित रहते हैं । इसी प्रकार दस ही प्रकार के भवनपतिदेवों की वृद्धि, हानि और अवस्थिति का कथन करना चहिए ।
एकेन्द्रिय जीव बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं । इन तीनों का काल जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टः आवलिका का असंख्यातवां भाग ( समझना चाहिए ) द्वीन्द्रिय जीव भी इसी प्रकार बढ़ते घटते हैं । इनके अवस्थान-काल में भिन्नता इस प्रकार हैये जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः दो अन्तमुहूर्त तक अवस्थित रहते हैं । द्वीन्द्रिय की तरह त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों तक ( का वृद्धि - हानि - अवस्थिति-काल ) कहना चाहिए ।
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शेष सब जीव, बढ़ते-घटते हैं, यह पहले की तरह ही कहना चाहिए । किन्तु उनके अवस्थान-काल में इस प्रकार भिन्नता है, यथा- सम्मूर्च्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों का दो अन्तमुहूर्त का; गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों का चौबीस मुहूर्त का सम्मूर्च्छिम मनुष्यों का ४८ मुहूर्त का, गर्भज मनुष्यों का चौबीस मुहूर्त्त का, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म, ईशान देवों का ४८ मुहूर्त का, सनत्कुमार देव का अठारह अहोरात्रि तथा चालीस मुहूर्त का, माहेन्द्र देवलोक के देवों का चौबीस रात्रिदिन और बीस मुहूर्त का ब्रह्मलोकवर्ती देवों का ४५ रात्रिदिवस का, लान्तक देवों का ९० रात्रिदिवस का, महाशुक्र देवलोकस्थ देवों का १६० अहोरात्र का, सहस्त्रारदेवों का दो सौ रात्रिदिन का, आनत और प्राणत देवलोक के देवों का संख्येय मास का, आरण और अच्युत देवलोक के देवों का संख्येय वर्षों का अवस्थान-काल है । इसी प्रकार नौ ग्रैवेयक देवों के विषय में जान लेना चाहिए । विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानवासी देवों का अवस्थानकाल असंख्येय हजार वर्षों का है । तथा सर्वार्थसिद्ध-विमानवासी देवों का अवस्थानकाल पल्योपम का संख्यातवाँ भाग है । और ये सब जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक बढ़ते घटते हैं; और इनका अवस्थानकाल जो ऊपर कहा गया है, वही है ।
भगवन् ! सिद्ध कितने काल तक बढ़ते है ? गौतम ! जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः आठ समय तक सिद्ध बढ़ते हैं । भगवन् ! सिद्ध कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक सिद्ध अवस्थित रहते हैं ।
भगवन् ! क्या जीव सोपचय (उपचयसहित) हैं, सापचय (अपचयसहित) हैं, सोपचयसापचय हैं या निरुपचय ( उपचयरहित) - निरपचय (अपचयरहित ) हैं ? गौतम ! जीव न सोपचय हैं, और न ही सापचय हैं, और न सोपचय - सापचय हैं, किन्तु निरुपचय-निरपचय हैं । एकेन्द्रिय जीवों में तीसरा पद ( विकल्प - सोपचय -सापचय) कहना चाहिए । शेष सब जीवों में चारों ही पद (विकल्प) कहने चाहिए । भगवन् ! क्या सिद्ध भगवान् सोपचय हैं, सापचय हैं, सोपचय -सापचय हैं या निरुपचय - निरपचय हैं ? गौतम ! सिद्ध भगवान् सोपचय हैं, सापचय नहीं हैं, सोपचय - सापचय भी नहीं हैं, किन्तु निरुपचय-निरपचय हैं ।
भगवन् ! जीव कितने काल तक निरुपचय - निरपचय रहते हैं ? गौतम ! जीव सर्वकाल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं । भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक सोपचय रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आबलिका के असंख्येय भाग तक । भगवन् ! नैरयिक