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________________ भगवती-५/-/८/२६२ १३९ आत्मा को भावित करते विचरते थे के अन्तेवासी निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार थे श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी नारदपुत्र नाम के अनगार थे । वे प्रकृतिभद्र थे यावत् । उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर । वे प्रकृति से भद्र थे, यावत् विचरण करते थे । एक बार निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार, जहाँ नारदपुत्र नामक अनगार थे, वहाँ आए और उनके पास आकर उन्होंने पूछा - 'हे आर्य ! तुम्हारे मतानुसार सब पुद्गल क्या सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश हैं ? नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से कहा- आर्य, मेरे मतानुसार सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं । तत्पश्चात् उन निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से यों कहा - हे आर्य ! यदि तुम्हारे मतानुसार सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, तो क्या, हे आर्य ! द्रव्यादेश से वे सर्वपुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं ? अथवा हे आर्य ! क्या क्षेत्रादेश से सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश आदि पूर्ववत् हैं ? या कालादेश और भावादेश से समस्त पुद्गल उसी प्रकार हैं ? तदनन्तर वह नारदपुत्र अनगार, निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से यों कहने लगे हे आर्य ! मेरे मतानुसार, द्रव्यादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं । क्षेत्रादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य आदि उसी तरह हैं, कालादेश तथा भावादेश से भी उसी प्रकार हैं । इस पर निर्ग्रन्थपुत्रअनगार ने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार प्रतिप्रश्न किया - हे आर्य ! तुम्हारे मतानुसार द्रव्यादेश से सभी पुद्गल यदि सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो क्या तुम्हारे मतानुसार परमाणुपुद्गल भी इसी प्रकार सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं ? और हे आर्य ! क्षेत्रादेश से भी यदि सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं तो तुम्हारे मतानुसार एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल भी सार्द्ध, समध्य एवं सप्रदेश होने चाहिए । और फिर हे आर्य ! यदि कालादेश से भी समस्त पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो तुम्हारे मतानुसार एक समय की स्थितिवाला पुद्गल भी सार्द्ध, समध्य एवं सप्रदेश होना चाहिए । इसी प्रकार भावादेश से भी हे आर्य ! सभी पुद्गल यदि सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो तदनुसार एकगुण काला पुद्गल भी तुम्हें सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश मानना चाहिए । यदि आपके मतानुसार ऐसा नहीं है, तो फिर आपने जो यह कहा था कि द्रव्यादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, क्षेत्रादेश से भी उसी तरह हैं, कालादेश से और भावादेश से भी उसी तरह हैं, किन्तु वे अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, इस प्रकार का आपका यह कथन मिथ्या हो जाता है । तब नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से कहा- "हे देवानुप्रिय ! निश्चय ही हम इस अर्थ को नहीं जानते देखते हे देवानुप्रिय ! यदि आपको इस अर्थ के परिकथन में किसी प्रकार की ग्लानि, न हो तो मैं आप देवानुप्रिय से इस अर्थ को सुनकर, अवधारणपूर्वक जानना चाहता हूँ ।" इस पर निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से कहा- हे आर्य ! मेरी धारणानुसार द्रव्यादेश से पुद्गल सप्रदेश भी हैं, अप्रदेश भी हैं, और वे पुद्गल अनन्त हैं । क्षेत्रादेश से भी इसी तरह हैं, और कालादेश से तथा भावादेश से भी वे इसी तरह हैं । जो पुद्गल द्रव्यादेश से अप्रदेश हैं, वे क्षेत्रादेश से भी नियमतः अप्रदेश हैं । कालादेश से उनमें से कोई सप्रदेश
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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