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समवाय-प्र./३६१
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[३६१] १. श्रेणिक, २. सुपार्श्व, ३. उदय, ४. प्रोठिल अनगार, ५. दृढायु, ६. कार्तिक, ७. शंख, ८. नन्द, ९. सुनन्द, १०. शतक । तथा
[३६२] ११. देवकी, १२. सात्यकि, १३. वासुदेव, १४. बलदेव, १५. रोहिणी, १६. सुलसा, १७. रेवती । तथा
[३६३] १८. शताली, १९. भयाली, २०. द्वीपायन, २१. नारद ।
[३६४] २२. अंबड, २३. स्वाति, २४. बुद्ध । ये भावी तीर्थंकरों के पूर्व भव के नाम जानना चाहिए ।
[३६५] उक्त चौवीस तीर्थंकरों के चौवीस पिता होंगे, चौवीस माताएं होंगी, चौवीस प्रथम शिष्य होंगे, चौवीस प्रथम शिष्याएं होंगी, चौवीस प्रथम भिक्षा-दाता होंगे और चौवीस चैत्य वृक्ष होंगे ।
इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी में बारह चक्रवर्ती होंगे । जैसे
[३६६] १. भरत, २. दीर्धदन्त, ३. गूढदन्त, ४. शुद्धदन्त, ५. श्रीपुत्र, ६. श्रीभूति, ७. श्रीसोम । तथा
[३६७] ८. पद्म, ९. महापद्म, १०. विमलवाहन, ११. विपुलवाहन और बारहवाँ रिष्ट, ये बारह चक्रवर्ती आगामी उत्सर्पिणी काल में भरत क्षेत्र के स्वामी होंगे ।
[३६८] इन बारह चक्रवर्तियों के बारह पिता, बारह माता और बारह स्त्रीरत्न होंगे ।
इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में नौ बलदेवों और नौ वासुदेवों के पिता होंगे, नौ वासुदेवों की माताएं होंगी, नौ बलदेवों की माताएं होंगी, नौ दशरामंडल होंगे । वे उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष प्रधान पुरुष, ओजस्वी तेजस्वी आदि पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त होंगे । पूर्व में जो दशार-मंडल का विस्तृत वर्णन किया है, वह सब यहाँ पर भी यावत् बलदेव नील वसनवाले और वासुदेव पीत वसनवाले होंगे, यहाँ तक ज्यों का त्यों कहना चाहिए । इस प्रकार भविष्यकाल में दो दो राम और केशव भाई होंगे । उनके नाम इस प्रकार होंगे
[३६९] १. नन्द, २. नन्दमित्र, ३. दीर्घबाहु, ४. महाबाहु, ५. अतिबल, ६. महाबल, ७. बलभद्र । तथा
[३७०] ८. द्विपृष्ठ और ९. त्रिपृष्ठ ये नौ आगामी उत्सर्पिणी काल में नौ वृष्णी या वासुदेव होंगे । तथा १. जयन्त, २. विजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन, ६. आनन्द, ७. नन्दन, ८. पद्म, और अन्तिम संकर्षण ये ९ नौ बलदेव होंगे ।।
[३७१] इन नवों बलदेवों और वासुदेवों के पूर्वभव के नौ नाम होंगे, नौ धर्माचार्य होंगे, नौ निदानभूमियाँ होंगी, नौ निदान-कारण होंगे और नौ प्रतिशत्रु होंगे । जैसे
[३७२] १. तिलक, २. लोहजंघ, ३. वज्रजंघ, ४. केशरी, ५. प्रभराज, ६. अपराजित, ७. भीम, ८. महाभीम, और ९. सुग्रीव ।
[३७३] कीर्तिपुरुष वासुदेवों के ये नौ प्रतिशत्रु होंगे । सभी चक्रयोधी होंगे और युद्ध में अपने चक्रों से मारे जायेंगे ।