SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद करने वाले हुए । एक अन्तिम बलदेव ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुए । जो आगामी भव में एक गर्भवास लेकर सिद्ध होंगे । [३४६] इसी जम्बूद्वीप के ऐवत वर्ष में इसी अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर हुए [३४७] १. चन्द्र के समान मुख वाले सुचन्द्र, २. अग्निसेन, ३. नन्दिसेन, ४. व्रतधारी ऋषिदत्त और ५. सोमचन्द्र की मैं वन्दना करता हूं । तथा [३४८] ६. युक्तिसेन, ७. अजितसेन, ८. शिवसेन, ९. बुद्ध, १०. देवशर्म, ११. निक्षिप्तशस्त्र (श्रेयान्स) की मैं सदा वन्दना करता हूं । तथा [३४९] १२. असंज्वल, १३. जिनवृषभ और १३. अमितज्ञानी अनन्त जिन की मैं वन्दना करता हूँ । १५. कर्मरज-रहित उपशान्त और १६. गुप्तिसेन की भी मैं वन्दना करता हूं । तथा [३५०] १७. अतिपावं, १८. सुपार्श्व, तथा १९. देवेश्वरों से वन्दित मरुदेव, २०. निर्वाण को प्राप्त घर और २१. प्रक्षीण दुःख वाले श्यामकोष्ठ, २२. रागविजेता अग्निसेन । [३५१] २३. क्षीणरागी अग्निपुत्र और राग-द्वेष का क्षय करने वाले, सिद्धि को प्राप्त चौवीस वें वारिषेण की मैं वन्दना करता हूं । [३५२] इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर होंगे । जैसे [३५३] १. मितवाहन, २. सुभूम, ३. सुप्रभ, ४. स्वयम्प्रभ, ५. दत्त, ६. सूक्ष्म और ७. सुबन्धु, ये आगामी उत्सर्पिणी में सात कुलकर होंगे । [३५४] इसी जम्बूद्वीप के एरवत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में दश कुलकर होंगे १. विमलवाहन, २. सीमंकर, ३. सीमंधर, ४. क्षेमंकर, ५. क्षेमंधर, ६. दृढधनु, ७. दशधनु, ८. शतधनु, ९. प्रतिश्रुति और १०. सुमति । इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में चौवीस तीर्थंकर होंगे । [३५५] १. महापद्म, २. सूरदेव, ३. सुपार्श्व, ४. स्वयम्प्रभ, ५. सर्वानुभूति, ६. देवश्रुत । तथा [३५६] ७. उदय, ८. पेढालपुत्र, ९. प्रोठिल, १०. शतकीर्ति, ११. मुनिसुव्रत, १२. सर्वभाववित् । तथा [३५७] १३. अमम, १४. निष्कषाय, १५. निष्पुलाक, १६. निर्मम, १७. चित्रगुप्त, १८. समाधिगुप्त । तथा [३५८] १९. संवर, २०. अनिवृत्ति, २१. विजय, २२. विमल, २३. देवोपपात और २४. अनन्तविजय ।। [३५९] ये चौवीस तीर्थंकर भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में धर्मतीर्थ की देशना करने वाले होंगे । [३६०] इन भविष्यकालीन चौवीस तीर्थंकरों के पूर्व भव के चौवीस नाम इस प्रकार हैं-यथा
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy