________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[३७४] इसी जम्बूद्वीप के ऐखत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में चौवीस तीर्थंकर होंगे । जैसे
२७०
[ ३७५] १. सुमंगल, २. सिद्धार्थ, ३. निर्वाण, ४. महायश, ५. धर्मध्वज, ये अरहन्त भगवन्त आगामी काल में होंगे । तथा
[३७६ ] पुनः ६. श्रीचन्द्र, ७ पुष्पकेतु, ८. महाचन्द्र केवली और ९ श्रुतसागर अर्हन् होंगे । तथा
[३७७] पुनः १०. सिद्धार्थ ११. पूर्णघोष, १२. महाघोष केवली और १३. सत्यसेन अर्हन् होंगे । तथा
[३७८] तत्पश्चात १४. सूरसेन अर्हन्, १५. महासेन केवली, १६. सर्वानन्द और १७. देवपुत्र अर्हन् होंगे । तथा
[३७९] तदनन्तर, १८. सुपार्श्व, १९. सुव्रत अर्हन्, २०. सुकोशल अर्हन्, और २१. अनन्तविजय अर्हन् आगामी काल में होंगे । तथा
[३८०] तदनन्तर, २२. विमल अर्हन्, उनके पश्चात्, २३. महाबल अर्हन् और फिर, २४. देवानन्द अर्हन् आगामी काल में होंगे ।
[३८१] ये ऊपर कहे हुए चौवीस तीर्थंकर केवली खत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में धर्म- तीर्थं की देशना करने वाले होंगे ।
[३८२] [इसी जम्बूद्वीप के एखत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में] बारह चक्रवर्ती होंगे, बारह चक्रवर्तियों के पिता होंगे, उनकी बारह माताएं होंगी, उनके बारह स्त्रीरत्न होंगे । नौ बलदेव और वासुदेवों के पिता होंगे, नौ वासुदेवों की माताएं होंगी, नौ बलदेवों की माताएं होंगी । नौ दशार मंडल होंगे, जो उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष, प्रधान पुरुष यावत् सर्वाधिक राजतेज रूप लक्ष्मी से देदीप्यमान दो-दो राम- केशव (बलदेव वासुदेव) भाई-भाई होंगे । उनके नौ प्रतिशत्रु होंगे, उनके नौ पूर्व भव के नाम होंगे, उनके नौ धर्माचार्य होंगे, उनकी नौ निदान - भूमियां होंगी, निदान के नौ कारण होंगे ।
इसी प्रकार से आगामी उत्सर्पिणी काल में ऐवतक्षेत्र में होने वाले बलदेवादि का मुक्ति-गमन, स्वर्ग से आगमन, मनुष्यों में उत्पत्ति और मुक्ति का भी कथन करना ।
इसी प्रकार भरत और ऐश्वत इन दोनों क्षेत्रों में आगामी उत्पसर्पिणी काल में होने वाल वासुदेव आदि का कथन करना चाहिए ।
[३८३] इस प्रकार यह अधिकृत समवायाङ्ग सूत्र अनेक प्रकार के भावों और पदार्थों को वर्णन करने के रूप से कहा गया है । जैसे- इसमें कुलकरों के वंशों का वर्णन किया गया है । इसी प्रकार तीर्थंकरों के वंशों का, चक्रवर्तियों के वंशों का, दशार-मंडलों का, गणधरों के वंशों का, ऋषियों के वंशों का यतियों के वंशों का और मुनियों के वंशों का भी वर्णन किया गया है ।
परोक्षरूप से त्रिकालवर्ती समस्त अर्थों का परिज्ञान कराने से यह श्रुतज्ञान है, श्रुतरूप प्रवचन - पुरुष का अंग होने से यह श्रुताङ्ग है, इसमें समस्त सूत्रों का अर्थ संक्षेप से कहा गया