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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
मेरा सत्कार हो ।
[९८०] धर्म दश प्रकार के हैं, यथा-ग्राम धर्म, नगर धर्म, राष्ट्र धर्म, पाषंड धर्म, कुल धर्म, गण धर्म, संघ धर्म, श्रुत धर्म, चारित्र धर्म, अस्तिकाय धर्म ।
[९८१] स्थविर दश प्रकार के हैं, ग्रामस्थविर, नगरस्थविर, राष्ट्रस्थविर, प्रशास्तु स्थविर, कुलस्थविर, गणस्थविर, संघस्थविर, जातिस्थविर, श्रुतस्थविर, पर्याय स्थविर ।
[९८२] पुत्र दश प्रकार के हैं, यथा-आत्मज-पिता से उत्पन्न, क्षेत्रज-माता से उत्पन्न किन्तु पिता के वीर्य से उत्पन्न न होकर अन्य पुरुष के वीर्य से उत्पन्न, दत्तक-गोद लिया हुआ पुत्र, विनयित शिष्य-पढ़ाया हुआ, ओरस-जिस पर पुत्र जैसा स्नेह हो, मौखर-किसी को प्रसन्न रखने के लिए अपने आपको पुत्र कहने वाला, शौंडी-जो शौर्य से किसी शूर पुरुष के पुत्र रूप में स्वीकार किया जाय, संवर्धित-जो पाल पोष कर बड़ा किया जाय, औपयाचितकदेवता की आराधना से उत्पन्न पुत्र, धर्मान्तेवासी-धर्माराधना के लिए समीप रहने वाला ।
. [९८३] केवली के दश उत्कृष्ट हैं, यथा-उत्कृष्ट ज्ञान, उत्कृष्ट दर्शन, उत्कृष्ट चारित्र, उत्कृष्ट तप, उत्कृष्ट वीर्य, उत्कृष्ट क्षमा, उत्कृष्ट निर्लोभता, उत्कृष्ट सरलता, उत्कृष्ट कोमलता, और उत्कृष्ट लघुता ।
[९८४] समय क्षेत्र में दश कुरुक्षेत्र हैं, यथा-पांच देव कुरु, पांच उत्तर कुरु ।
इन दश कुरुक्षेत्रों में दश महावृक्ष हैं । यथा-जम्बू सुदर्शन, घातकी वृक्ष, महाघातकी वृक्ष, पद्मवृक्ष, महापद्म वृक्ष, पांच-कूटशाल्मली वृक्ष ।
इन दश कुरु क्षेत्रों में दश महर्धिक देव रहते हैं, यथा-१. जम्बूद्वीप का अधिपतिदेवअनाहत, २. सुदर्शन, ३. प्रियदर्शन, ४. पौंडरिक, ५. महापौंडरिक, ६-१० पांच गरुड़ (वेणुदेव) देव हैं ।
[९८५] दश लक्षणों से पूर्ण दुषम काल जाना जाता है, यथा-अकाल में वर्षा हो, काल में वर्षा न हो, असाधु की पूजा हो, साधु की पूजा न हो, माता पिता आदि का विनय न करे, अमनोज्ञ शब्द यावत् स्पर्श ।
___ दश कारणों से पूर्ण सुषमकाल जाना जाता है, यथा-अकाल में वर्षा न हो, शेष पूर्व कथित से विपरीत यावत् मनोज्ञ स्पर्श ।
[९८६] सुषम-सुषम काल में दश कल्पवृक्ष युगलियाओं के उपभोग के लिए शीध्र उत्पन्न होते हैं । यथा
[९८७] मत्तांगक-स्वादु पेय की पूर्ति करने वाले, भृताँग–अनेक प्रकार के भाजनों की पूर्ति करने वाले, तूर्यांग-वाद्यों की पूर्ति करने वाले, दीपांग-सूर्य के अभाव में दीपक के समान प्रकाश देने वाले, ज्योतिरंग-सूर्य और चन्द्र के समान प्रकाश देने वाले, चित्रांग-विचित्र पुष्प देने वाले, चित्र रसांग-विविध प्रकार के भोजन देने वाले, मण्यंग-मणि, रत्न आदि आभूषण देने वाले, गृहाकार-घर के समान स्थान देने वाले, अनग्न-वस्त्रादि की पूर्ति करने वाले।
[९८८] जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी में दश कुलकर थे, यथा
[९८९] शतंजल, शतायु, अनन्तसेन, अमितसेन, तर्कसेन, भीमसेन, महाभीमसेन, दढ़धनु, दश धनु, शत धनु ।