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स्थान-१०/-/९७५
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विप्रतिपति, उपाध्यायविप्रतिपत्ति, भावना, विमुक्ति, शास्वत, कर्म ।
द्विगृद्धि दशा के दस अध्ययन हैं, यथा-वात, विवात, उपपात, सुक्षेत्र कृष्ण बियालीस स्वप्न, तीसमहास्वप्न, बहत्तरस्वप्न, हार, राम, गुप्त ।
दीर्ध दशा के दस अध्ययन हैं । यथा-चन्द्र, सूर्य, शुक्र, श्री देवी, प्रभावती, द्वीप समुद्रोपपत्ति, बहुपुत्रिका, मंदर, स्थविर संभूतविजय, स्थविरपद्म श्वासनिश्वास ।
संक्षेपिक दशा के दस अध्ययन हैं, क्षुल्लिका विमान प्रविभक्ति, महती विमान प्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका, विवाहचूलिका, अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुलोपपात, वेलंधरोपपात, वैश्रमणोपपात ।
[९७६] दस सागरोपम क्रोड़ाक्रोड़ी प्रमाण उत्सर्पिणी काल है । दस सागरोपम क्रोड़ाक्रोड़ी प्रमाण अवसर्पिणी काल है ।
[९७७] नैरयिक दस प्रकार के हैं, यथा-अनन्तरोपपन्नक, परंपरोपन्नक, अनन्तरावगाढ, परंपरावगाढ़, अनन्तराहारक, परंपराहारक, अनन्तर पर्याप्त, परम्परा पर्याप्त, चरिम, अचरिम । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दस प्रकार के हैं ।
चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में दस लाख नरकावास हैं । रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिको की जघन्य स्थिति, दस हजार वर्ष की है । चौथी पंक प्रभा पृथ्वी में नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है । पाँचवी धूमप्रभा पृथ्वी में नैरयिकों की जघन्य स्थिति दस सागरोपम की है ।
असुरकुमारों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है । इसी प्रकार स्तनित कुमार पर्यन्त दसहजार वर्ष की स्थिति हैं ।
बादर वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट स्थिति दस हजार वर्ष की है । वाणव्यन्तर देवों की जघन्यस्थिति दस हजार वर्ष की है।
ब्रह्मलोककल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है । लातककल्प में देवों की जघन्य स्थिति दशसागरोपम की है ।
[९७८] दस कारणों से जीव अगामी भव में भद्रकारक कर्म करता है । यथाअनिदानता-धर्माचरण के फल की अभिलाषा न करना । दृष्टिसंपन्नता-सम्यग्दृष्टि होना । योगवाहिता-तप का अनष्ठान करना ।क्षमा-क्षमा धारण करना । जितेन्द्रियता इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना । अमायिता-कपट रहित होना । अपार्श्वस्थता-शिथिलाचारी न होना । सुश्रामण्यता-सुसाधुता । प्रवचनवात्सल्य-द्वादशाङ्ग अथवा संघ का हित करना । प्रवचनोद्भावना प्रवचन की प्रभावना करना ।
[९७९] आशंसा प्रयोग दश प्रकार के हैं, यथा-इहलोक आशंसा प्रयोग-मैं अपने तप के प्रभाव से चक्रवर्ती आदि होऊं । परलोक आशंसा प्रयोग-मैं अपने तप के प्रभाव से इन्द्र अथवा सामान्य देव बनूं, उभयलोक आशंसा प्रयोग-मैं अपने तप के प्रभाव से इस भव में चक्रवर्ती बनूं और परभव में इन्द्र बनूं । जीवित आशंसा प्रयोग-मैं चिरकाल तक जीवू, मरण आशंसा प्रयोग मेरी मृत्यु शीध्र हो, काम आशंसा प्रयोग-मनोज्ञ शब्द आदि मुझे प्राप्त हो, भोग आशंसा प्रयोग-मनोज्ञ गंध आदि मुझे प्राप्त हो, लाभ आशंसा प्रयोग-कीर्ति आदि प्राप्त हो, पूजा आशंसा प्रयोग-पुष्पादि से मेरी पूजा हो, सर आशंसा प्रयोग श्रेष्ठ वस्त्रादि से