________________
स्थान - १०/-/९९१
१७७
[९९१] जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व में शीता महानदी के दोनों किनारों पर दश वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा- माल्यवन्त, चित्रकूट, विचित्रकूट, ब्रह्मकूट, यावत् सोमनस । जम्बूद्वीप मेरु पर्वत से पश्चिम में शीतोदा महानदी के दोनों किनारों पर दश वक्षस्कार पर्वत हैं, यथाविद्युत्प्रभ यावत् गंधमादन । इसी प्रकार घातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में भी दश वक्षस्कार पर्वत हैं यावत् पुष्करवर द्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में भी दश वक्षस्कार पर्वत हैं ।
[९९२] दश कल्प इन्द्र वाले हैं, यथा-सौधर्म यावत् सहस्रार, प्राणत, अच्युत । इन दश कल्पों में दश इन्द्र हैं, यथा— शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र यावत् अच्युतेन्द्र ।
इन दश इन्द्रों के दश पारियानिक विमान हैं । यथा - पालक, पुप्पक यावत्, विमलवर, और सर्वतोभद्र ।
[९९३] दशमिका भिक्षु प्रतिमा की एक सौ दिन से और ५५० भिक्षा (दत्ति) से सूत्रानुसार यावत् आराधना होती है ।
[ ९९४] संसारी जीव दश प्रकार के हैं, यथा- प्रथमसमयोत्पन्न एकेन्द्रिय, अप्रथमसमयोत्पन्न एकेन्द्रिय, यावत् अप्रथम समयोत्पन्न पंचेन्द्रिय । सर्व जीव दश प्रकार के हैं, यथा - पृथ्वीका यावत् वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय, अनिन्द्रिय ।
सर्व जीव दश प्रकार के हैं, प्रथम समयोत्पन्न नैरयिक, अप्रथम समयोत्पन्न नैरयिक, अप्रथम समयोत्पन्न देव, प्रथम समयोत्पन्न सिद्ध, अप्रथमसमयोत्पन्न सिद्ध ।
[ ९९५] सौ वर्ष की आयु वाले पुरुष की दसा दशाये हैं ।
[९९६] यथा - बाला दशा, क्रीडा दशा, मंद दशा, बला दशा, प्रज्ञा दशा, हायनी दशा, प्रपंचा दशा, प्रभारा दशा, मुंमुखी दशा, शायनी दशा ।
[९९७] तृण वनस्पतिकाय दस प्रकार का है, मूल, कंद, यावत्-पुष्प, फल, बीज । [९९८] विद्याधरों की श्रेणियाँ चारों ओर से दस-दस योजन चौड़ी हैं । अभियोगिक देवों की श्रेणियाँ चारों ओर से दस-दस योजन चौड़ी हैं । [९९९] ग्रैवेयक देवों के विमान दस योजन के ऊँचे हैं ।
[१०००] दस कारणों से तेजोलेश्या से भस्म होता है । यथा - तेजोलेश्या लब्धि युक्त श्रमण-ब्राह्मण की यदि कोई आशातना करता है तो वह आशातना करने वाले पर कुपित होकर तेजोलेश्या छोड़ता हैं इससे वह पीड़ित होकर भस्म हो जाता है । इसी प्रकार श्रमण ब्राह्मण की आशातना होती देखकर कोई देवता कुपित होता है और तेजोलेश्या छोड़कर आशातना करने वाले को भस्म कर देता हैं । इसी प्रकार श्रमण-ब्राह्मण की आशातना करने वाले को देवता और श्रमण-ब्राह्मण एक साथ तेजोलेश्या छोड़कर भस्म कर देता है । इसी प्रकार श्रमण-ब्राह्मण जब तेजोलेश्या छोड़ता है तो आशातना करने वाले के शरीर पर छाले पड़ जाते हैं, छालों के फूट जाने पर वह भस्म हो जाता है । इसी प्रकार देवता तेजोलेश्या छोड़ता है तो आशातना करने वाला उसी प्रकार भस्म हो जाता है ।
इसी प्रकार देवता और श्रमण-ब्राह्मण एक साथ तेजोलेश्या छोड़ते हैं तो आशातना करने वाला उसी प्रकार भस्म हो जाता है । इसी प्रकार श्रमण-ब्राह्मण जब तेजोलेश्या छोड़ता है तो आशातना करने वाले के शरीर पर छाले पड़कर फूट जाते हैं, पश्चात् छोटे- छोटे छाले पैदा होकर भी फूट जाते हैं तब वह भस्म हो जाता है । इसी प्रकार देवता जब तेजोलेश्या
212